शिवखोड़ीःजहां शिव लगाये बैठे है समाधि
समाधि लगाये बैठे शिव,ऊपर से गिरती जल की बूंद तथा सावन माह में टपकता दूध। जी हॉ यह दृश्य कोई काल्पनिक नही बल्कि शिव खोड़ी की गुफा का है। जहां भगवान शिव 33 सौ करोड़ देवता के साथ विराजमान है। आगे भगवान शिव समाधि लगाये बैठे है तो उनके पीछे 33 सौ करोड़ देवता विराजमान है। भगवान शिव की समाधि के पीछे ऊपर की ओर भक्त शिरोमणि हनुमान के साथ राम दरबार भी मौजूद है। यह सब नजारा किसी इंसान ने नही बल्कि प्रभु ने स्वयं सजाया है। कटरा से लगभग 84 किमी दूर रन्सू गांव में स्थित है। रन्सू गांव से शिव खोड़ी धाम चार किमी दूर है। आरम्भिक चरण में एक सुन्दर नदी बहती है जिसे दूध गंगा कहा जाता है। पुल को पार करते ही थोड़ी दूर आगे चलने के बाद एक कुण्ड आता हे, जिसे अंजली कुण्ड के नाम से पुकारा जाता है। यहां पर नंदी बैल के पांव देखने को मिलते हैं। लोगों का मानना है कि नंदी बैल ने पानी पिया था। दूध गंगा यात्रियों के मार्ग के साथ -साथ ही बहती है। मार्ग में नदी का स्वच्छ व निर्मल जल टेढ़े-मेढ़े रास्ते, हरी-भरी पहाड़िया, शान्त वातावरण एक मनोरम दृश्य मन को अपनी ओर आकर्षित करता है। करीब एक किमी चलने के बाद एक पुल पार करना पड़ता है। पुल पार करते ही एक छोटा सा मंदिर आता है। इस मंदिर में एक छोटी सी प्राचीन गुफा है। कुछ देर तक विश्राम करके ओम नमो शिवाय, हर-हर महादेव कहते हुये आगे बढ़ते है। एक किमी आगे और चलने के बाद फिर एक और पुल पार करना पड़ता है। पुल को पार करते ही शिव मन्दिर एवं संताें की कुटिया आती है, जिसे नावनी के नाम से जाना जाता है। साधु-संत आने वाले भक्तों की हर समय सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। यात्री कुछ समय तक मन्दिर में विश्राम करके और मन में भोले बाबा की उमंग लिए बरबस ही पांव आगे बढ़ाते हैं। 2-80 किमी आगे चलने के बाद लक्ष्मी गणेश का मन्दिर आता है। इस मंदिर के अन्दर एक छोटी सी गुफा और मां लक्ष्मी,श्री गणेश की दो प्राचीन मूर्तिया है। मन्दिर के पास से गुजरती हुई दूध गंगा का स्वच्छ जल मन्दिर की शोभा बढ़ाता है। ऊॅचे-ऊॅचे पहाड़ों से घिरा दृश्य अधिक अद्भुत है। इसके पास से गंगा जी का निर्मल एवं स्वच्छ जल छोटी सी गुफा से निकल रहा है। पहाड़ के अन्दर से निकलती दूध गंगा अधिक उत्तम स्थल है। यह दृश्य अधिक मनमोहक है। प्रकृति का यह दृश्य अविस्मरणीय एवं अतुलनीय है। गुफा से करीब आधा किमी पहले दो तीन प्रसाद की दुकानें आती है। यहां पर प्रसाद आदि की व्यवस्था है। भक्तजन प्रसाद, बेलपत्र, मेवे, मखाने एवं नारियल लेकर गुफा की ओर चलते है।
गुफा की खोज
आज से लगभग पांच सौ साल पहले की बात है जब यहां पर बाहर से कुछ गडरिये लोग सर्दियों में अपनी भेड़ बकरियां लेकर जम्मू व कश्मीर में आया करते थे। तब इस जगह पर बहुत कम आबादी थी। यहां पर पंडितों का एक ही मोहल्ला था। एक दिन की बात थी कि अचानक एक गडरिये की भेड़-बकरियां गुम हो गई। वह बहुत परेशान था कि उसकी बकरियां कहां चली गई। तब वह बकरियों की तलाश में जंगल की ओर निकल पड़ा। किन्तु उसे उसकी बकरियां कहीं भी नही मिली। अन्त में वह ढूंढता -ढूंढता अचानक एक गुफा के बाहर खड़ा हो गया। तब उसने जब गुफा की ओर देखा तो वह बड़ा हैरान हुआ कि इतनी बड़ी गुफा। उसने सोचा हो सकता है कि मेरी बकरियां कहीं उसके अन्दर तो नही घुस गई। तब वह डरता-डरता गुफा के बाहर पहुंचा तो उसने देखा कि इतनी लम्बी गुफा और उसे काफी अन्धेरा दिखाई दिया। तब वह लकड़ियों के एक छोटे से गट्ठे को जलाकर आगे बढ़ने लगा। अंत में सौ मी- चलने के बाद उसने देखा कि तीन साधु पत्थर की एक बहुत बड़ी समाधि के पास खड़े है और अराधना कर रहे है। तब उस गडरिये ने देखा कि प्राकृतिक बनी हुई मूर्ति पर अपने आप लगातार जल की धारें गिर रही थी और वे धारें देखने में बिल्कुल दूध की तरह दिखाई दे रही थी। साधु उस मूर्ति की पूजा कर रहे थे। गडरिया उन सब दृश्यों को देखकर चकित हो उठा। वह जैसे ही वहां से बाहर आने की सोच रहा था कि इतने में साधुओं ने उसे देख लिया। जब साधुओं ने गडरिये से अन्दर आने का कारण पूछा तो उसने अपनी पूरी बात बताई। तब साधु महाराज कहने लगे तुम घबराओं मत। तुम्हें तुम्हारी भेड़-बकरियां मिल जाएंगी और कहने लगे कि तुम इस गुफा के बारे में किसी को कुछ मत बताना। साधुओं के द्वारा बताने पर वह गुफा के बाहर अा गया और सीधा अपनी झौंपड़ी में गया। आते ही उसने देखा कि उसकी भेड़-बकरियां उसके घर आने से पहले ही आ गई थी। गडरिया अपनी भेड़-बकरियों को देखकर बहुत खुश हुआ। वह अपनी भेड़ बकरियों को लेकर उस जंगल के नीचे गांव की ओर गया और गांव वालों को बताये बिना रह न सका, जिससे गांव के सब लोगों को गुफा के बारे में मालूम हो गया। लेकिन डर के मारे इस गुफा में कोई भी व्यक्ति नही जाता था। कुछ समय बीत जाने के बाद इस गांव में तीन साधु महाराज आए। वे एक दिन के लिए इस गांव में ही रूके। तब लोगों ने उन साधुओं से पूछा, आप कहां से आये है और कहां जा रहे है। साधुओं ने उत्तर दिया, हम कैलाश से आए है और भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए इस जंगल की ओर गुफा में जा रहे है। तब वे जंगली की ओर चले गए और काफी समय बीत गया। वे वापिस नही आए। छह मास बीत जाने के बाद, तीन में से एक साधु फिर इस गांव में वापिस आया। तब लोगों के पूछे जाने पर उस साधु ने बताया कि यह भगवान शंकर की गुफा है। मैं इस गुफा के बारे में तुम सबको विस्तार पूर्वक कथा बताता हूॅ। भस्मासुर की उत्पत्ति
भस्मासुर की उत्पत्ति शिव धूने से हुई है- कहा जाता है कि भगवान शंकर जी कैलाश पर्वत पर कल्पवृक्ष के नीचे धूना लगाकर बैठते थे। वह उस धूने में रोज भांग का गोला दबाकर रखते थे। आशुतोष भगवान शिव शंकर जी अपनी भक्ति में लीन हो गए और भांग का गोला धूने में रहा। भगवान शंकर जी की तपस्या और समाधि के समय का अनुमान लगाना बहुत कठिन है। बहुत समय बीत गया, भगवान भोले नाथ की तपस्या और समाधि पूरी नही हुई तो एक दिन माता पार्वती ने भगवान शंकर के धूने को चेतन करना चाहा। माता पार्वती ने जैसे ही धूने को चेतन किया तो धूने में से एक असुर की उत्पत्ति हो गई। माता पार्वती उस दानव को देखकर बड़ी हैरान हुई, तब उस दानव ने माता पार्वती को प्रणाम किया और कहा- हे माते, मेरा क्या नाम है? कृपया मुझे काम बताएं। तब पार्वती ने कहा, जब तक भगवान शिव जी की तपस्या और समाधि खत्म नही होती, तब तक तुम यहां कैलाश पर ही रहो और वो ही आपको आपका नाम और काम बताएंगे। इतना कहकर माता शिवलोक में आ गईं एक दिन नारद जी भ्रमण करते हुये शिव लोक में आए। माता पार्वती को परेशान देखकर नारद जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब नारद जी ने माता पार्वती से कहा- माते आज मै क्या देख रहा हूॅ, जो माता सबके दुखों और कष्टों को दूर करती है आज खुद परेशान है। तब माता पार्वती ने नारद जी को अपनी परेशानी की सारी बात बताई। तब नारद जी ने कहा नारायण! नारायण! भोलेनाथ की माया भोले नाथ ही जानें। नारद जी कहने लगे माता मेरे मन में एक सुझाव है, हो सकता है आपकी परेशानी इस सुझाव से दूर हो जाए। माता अगर आप कहें तो मै यह सुझाव आपको बताता हूॅ। तब नारद जी ने कहा- माता हम उस दानव को शंकर की तपस्या में लगा देते है। तब माता ने कहा नारद जैसे आपको अच्छा लगे वैसा कीजिए। तब नारद उस दानव के पास चले गए और कहा है दानव! तुम भगवान शंकर के आने की प्रतीक्षा कर रहे हो परन्तु भगवान शंकर की तपस्या कब खत्म होगी, यह कोई नही जानता। इसलिये तुम तब तक भगवान शंकर की तपस्या करो और भगवान शंकर को प्रसन्न करके उनसे इच्छा पूर्वक वरदान पा सकते हो। इतना कह कर नारद जी वहां से चले गए।
शिवखोड़ी की कथा तब उस दानव ने भगवान शंकर की कठिन तपस्या की थी। भगवान शंकर ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे साक्षात शिव स्वरूप के दर्शन दिए और उसे वरदान मांगने को कहा। तब उस दानव (असुर) ने कहा, हे प्रभु! मुझे ऐसा वरदान दो,जिससे मै अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग करके किसी को भी भस्म कर सकूं। तब भगवान शिव शंकर ने प्रसन्नता पूर्वक उसे अपने हाथ का भस्मी कड़ा (कंगन) वरदान में दे दिया और कहा हे असुर! तुम इस कड़े का प्रयोग करके किसी को भी भस्म कर सकते हो और जब तक यह कड़ा तुम्हारे हाथ में रहेगा तब तक कोई भी शक्ति तुम्हारा कुछ नही कर सकती। परन्तु तुमने इस कड़े का दुरूपयोग किया तो निश्चय ही तुम स्वयं भस्म हो जाओगे। भस्मी कड़ा मिलने के पश्चात वह एक भ्रम से भर गया था। वह अपने आपको सर्वशक्तिमान समझने लगा था। यह सब देखकर देवता लोग बहुत भयभीत होने लगे कि कहीं भस्मासुर स्वर्ग लोक में आकर हमें भस्म न कर दे। इतने में अचानक नारद जी नारायण-नारायण की रट लगाए हुए वहां पहुंचे और सभी देवताओं को घबराए देखकर कहने लगे कि आप सब देवता लोग क्यों घबराए है। उत्तर में इन्द्र जी ने कहा कि हे नारद! आप नही जानते कि भगवान शंकर जी ने भस्मासुर को भस्मी कड़ा वरदान में दे दिया है और आप इससे भी परिचित है कि जब-जब असुरों ने वरदान पाए तो सर्वप्रथम उन्होंने स्वर्ग पर हमला किया है। यही हमारे भय का कारण है। तब नारद जी कहने लगे कि इस समय आप देवताओं को घबराना नही चाहिए बल्कि इस समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए, तब नारद जी देवता सहित विष्णु भगवान जी के पास चले गए और वे विष्णु जी से कहने लगे, हे प्रभु ! जब भी कोई संकट आता है तो आप ही उसका समाधान निकालते हैं। इसी तरह भस्मासुर भी भगवान शंकर जी से वरदान पाकर जो कि एक संकट बन गया है जो देवताओं के लिए हानि कारण सिद्ध हो सकता है। कृपा करके प्रभु इस समस्या का समाधान कीजिए। इतने में भगवान विष्णु जी नारद से कहते है, अब आप ही अपनी चतुराई का प्रयोग करके इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। तब विष्णु जी कहते है कि आप भस्मासुर को त्रिलोक पति बनने का मोह देकर इस समस्या का हल निकाल सकते है। तब नारद जी सब समझ जाते है कि अब क्या किया जाना है। नारद जी नारायण-नारायण का रट लगाए हुये सीधे भस्मासुर के पास चले गए और भस्मासुर की प्रशंसा इस तरह करने लगे, आप धन्य है भस्मासुर,जो कि आपने कठिन तपस्या द्वारा मन चाहा वरदान पा लिया है। अब आप को तो त्रिलोक पति बनने से भी कोई नही रोक सकता है। इन्हीं शब्दों को सुनते ही भस्मासुर का मन लोभ से भर गया। तब भस्मासुर कहने लगा कि नारद जी मैं और त्रिलोक पति कैसे बन सकता हूॅ। नारद जी कहने लगे, इसमें कौन सी कठिनाई है। यह तो बहुत आसान कार्य है जो कि आप कर सकते हैं। भस्मासुर तुम तो अपने वरदान द्वारा भगवान शंकर जी को भस्म करके और आदि शक्ति माता पार्वती जी से शादी करके तीन लोक के मालिक बन सकते हैं। फिर देखना सब दानव, मानव और सभी स्वर्गवासी भी आपको ही स्मरण करेंगे, इतना कह कर नारद जी चले गए। तब भस्मासुर सब कुछ समझ गए और वह भगवान शंकर की तलाश में कैलाश की ओर निकल पड़ा। तब अन्तर्यामी भगवान भोले नाथ जी सब कुछ जानते थे कि अब क्या होने वाला है। तब वह नंदी पर सवार होकर माता पार्वती के साथ आकाश मार्ग में निकल पड़े। परन्तु इतने में भस्मासुर ने उन्हें देख लिया और उनका पीछा करने लगे। वे जहां भी जाते भस्मासुर उनका पीछा करने लगा। जब भगवान शंकर जी ने देखा कि भस्मासुर बहुत पीछे है तो तब उन्होंने कुछ समय तक विश्राम करना चाहा। वहां एक नगर में आकर िवश्राम करने लगे, वह नगर रन्सू के नाम से प्रसिद्ध है। जब भगवान शंकर विश्राम कर रहे थे तब भस्मासुर ने उन्हें देख लिया। तब उन दोनों के बीच मायावी शक्तियों का युद्ध हुआ। क्या भगवान शंकर उस असुर का वध नही कर सकते थे, इसमे कोई शक नही है कि भगवान शंकर भस्मासुर को समाप्त कर सकते थे लेकिन भस्मासुर को मारने के पीछे दो प्रमुख कारण थे। एक तो भगवान शंकर जी अपने भक्त को अपने हाथों मारना उचित नही समझते थे और दूसरा भस्मासुर की मृत्यु भगवान श्री विष्णु के हाथों से लिखी गई थी। जब युद्ध हो रहा था, तब भगवान शंकर ने सोचा कि भस्मासुर अब मेरा पीछा छोड़ने वाला नही है। तब भगवान शंकर ने गुस्से में आकर अपना त्रिशुल निकाल कर फेंका। आगे -आगे त्रिशूल, पीछे-पीछे भोलेनाथ चलते गए। अतः त्रिशूल जाकर एक पहाड़ में लगा, जिससे शिव गुफा का निर्माण हुआ। (गुफा को डोगरी भाषा,जो जम्मू की भाषा है में खोड़ी कहा जाता है जिस कारण इस शिव गुफा का नाम शिव खोड़ी पड़ा।) भोले नाथ माता पार्वती के साथ गुफा के अन्दर जाकर समाधि लगाकर बैठ गए और भीतर से गुफा बन्द हो गई। भस्मासुर पीछा करता-करता जब वहां तक पहुंचा तो उसने देखा कि शंकर भगवान! अन्दर जाकर बैठ गये है। तब उसने गुफा के अन्दर जाना चाहा। परन्तु गुफा भीतर से बन्द होने के कारण वह अन्दर नही जा सका और वह बाहर बैठ कर भगवान शंकर के आने की प्रतीक्षा करने लगा। भस्मासुर ने काफी समय तक भोले नाथ के आने की प्रतीक्षा की, परन्तु भगवान शंकर बाहर नही आए। भगवान शंकर को त्रिलोक में न देखकर देवता लोग घबरा गए और एक बार फिर नारद सहित सभी देवता लोग मिलकर भगवान श्री विष्णु के पास बैकुण्ठ लोक में चले गए। तो नारद जी भगवान श्री विष्णु जी को कहने लगे हे प्रभु! आप के ही कहने पर मैने भस्मासुर को त्रिलोक का मोह देकर भगवान शंकर की ओर किया और भगवान शंकर भस्मासुर के डर के मारे पता नही त्रिलोक छोड़कर कहां चले गए है। प्रभु अब आप ही इस समस्या का हल निकाल सकते है। तब भगवान श्री विष्णु नारद जी से कहने लगे, हे नारद! आप सभी देवता लोग निश्चिन्त होकर लौट जाइए, क्योकि भस्मासुर की मृत्यु का समय अब बहुत समीप आ चुका हैं। अन्तर्यामी भगवान श्री विष्णु ने तब मोहिनी रूप धारण किया जो उन्होंने एक बार पहले भी किया था जब देवता और दानवों के बीच अमृत बांटा गया था लेकिन इस बार भगवान श्री विष्णु ने माता पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के पास इस गुफा में आए। जैसे ही भस्मासुर की दृष्टि मोहिनी रूप धारण किए हुए भगवान विष्णु पर पड़ी तो वह अत्यन्त मोहित हो गए। तब छल-कपट से विष्णु भगवान भस्मासुर से कहने लगे, हे भस्मासुर! भगवान शंकर आपके डर के मारे मुझ (पार्वती) को बाहर छोड़कर खुद अन्दर जाकर बैठ गए है। अब मैं उनके साथ नही रहना चाहती, क्योकि अगर उनको मेरी चिन्ता होती तो मुझे बाहर नही छोड़ते। तब मोहिनी रूप में विष्णु जी कहने लगे, मैं आपसे शादी करने के लिये तैयार हूॅ, परन्तु इससे पहले आपको मेरी तरह ताण्डव नृत्यु करना होगा और भस्मासुर मोह माया के जाल में फंस कर उनकी बातों में आ गया और ताण्डव नृत्य करना आरम्भ कर दिया। जैसे ही विष्णु (पार्वती के रूप में) ताण्डव नृत्य करता, वैसे ही भस्मासुर उनको देखकर नृत्य करता। आकाश मार्ग से ताण्डव नृत्य करवाते-करवाते भगवान विष्णु भस्मासुर को मद्रास (चेन्नई) में ले आये। जब विष्णु जी ने देखा कि भस्मासुर पूरी तरह मोहमाया के जाल में फंस गया है। वह अपना भस्मी कड़ा भी भूल गया है तब विष्णु जी ने नृत्य करते-करते अपना हाथ अपने ही सिर के ऊपर रखा तो वह अपने ही भस्मी कड़े द्वारा खुद ही भस्म हो गया। जिस पहाड़ पर भस्मासुर भस्म हुआ उस पहाड़ का नाम भस्मा पहाड़ पड़ा। जो कि मद्रास (चेन्नई) में है। भस्मासुर के भस्म हो जाने पर देवता लोग अन्यन्त खुश हुए और भगवान श्री विष्णु ने भस्मी कड़े को उठाया और 33 करोड़ देवताओं सहित शिव गुफा में भगवान शंकर के दर्शन करने आए। परन्तु गुफा भीतर से बन्द होने पर सभी देवता लोग विष्णु भगवान से कहने लगे, हे प्रभु! गुफा तो बन्द है, अब हम कैसे भगवान शंकर जी के दर्शन कर सकते है। इतने में विष्णु भगवान जी ने मन में ही भगवान शंकर जी का स्मरण किया और उन्हें कहने लगे, हे प्रभु! अब भस्मासुर भस्म हो गया है और अब आप कृपा करके गुफा को खोलें, ताकि हम सब देवताओं सहित आपके अलौकिक दर्शन कर सकें। परन्तु भगवान शंकर विष्णु भगवान जी से कहने लगे कि अगर आप विष्णु जी है तो आप अपनी कामधेनु गाय द्वारा इस गुफा का मार्ग खोलिये। तब विष्णु जी ने अपनी कामधेनु गाय को अपनी हथेली पर रखकर अन्दर भेजा, जिससे गुफा का मार्ग भी खुल गया। तब सभी देवता भगवान शंकर को कहने लगे, हे प्रभु! कृपा करके कैलाश पर चलिए, पूरा त्रिलोक आपके बिना सूना है। परन्तु माता ने हठ कर ली और कहने लगी कि हे प्रभु! आपने एक बार मुझ से वादा किया था कि मै तुम्हे अमर कथा सुनाऊॅगा। पार्वती जी ने कहा हे प्रभु! आप मुझे काफी दिनों से अमर कथा सुनाने के लिये टालामटोली कर रहे हैं। अब जब तक आप मुझे अमर कथा नही सुनायेंगे तब तक मैं गुफा से नही जाऊॅगी। (हम पहले ही बता चुके हैं कि नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने अमर कथा सुनायें जाने की क्यो जिद की थी ) पार्वती जी की जिद के आगे भगवान शिव की एक न चली और कथा सुनाये जाने के लिये वह इस गुफा से ही आगे किसी एकांत स्थान के लिये निकल पड़े और वह पहलगॉव, चन्दनवाड़ी,गणेश टॉप, शेषनाग आदि स्थानों से होते हुये श्री अमरनाथ गुफा पहुॅचे। इन सब पवित्र स्थानों के बारे में हम पहले ही बता चुके है। जब भगवान शंकर माता पार्वती को लेकर इस गुफा से निकल गये तो तब देवता लोग एक छोटी सी गुफा से स्वर्ग लोक में वापिस चले गए। इसलिये इस गुफा को स्वर्ग गुफा कहा जाता है। इस गुफा से दो रास्ते निकलते है,एक रास्ता अमरनाथ को जाता है जिससे भगवान शंकर जी माता पार्वती जी के साथ गये थे और दूसरा छोटा रास्ता स्वर्ग लोक को जाता है। कथा आदि बताने के बाद साधु महाराज ने लोगों को यह भी बताया कि जो व्यक्ति इस गुफा के पूरे दर्शन कर लेगा अर्थात यहां से अमरनाथ तक उस व्यक्ति की चार धाम की यात्र सम्पूर्ण हो जाएगी, परन्तु कलयुग में इस गुफा के पूरे दर्शन कोई नही कर सकता। उस साधु महाराज ने लोगों को गुफा में मौजूद मूर्ति से परिचित करवाया और कहा जो व्यक्ति सच्चे हृदय से श्री शिवखोड़ी धाम के दर्शन करने आएगा, निश्चय ही उसकी हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण हो जायेगी। बताया जाता है कि इस गुफा में प्रवेश करने के बाद यदि कोई यात्री इन दो रास्तों से जाने का प्रयास करता है तो वह वापिस नही आता है। कुछ साधु
इस रास्ते से गये थे लेकिन आज तक उनका कोई पता नही चल पाया है।