अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चण्डाल का, उसका कोई क्या बिगाड़े जो सेवक हो महाकाल का

डमारक देवता की पूजा के बिना अधूरी हैं पवित्र श्री अमरनाथ यात्र

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गतांक से आगे——–इसके पश्चात ऐसी मान्यता है कि शिव पार्वती ने इस पर्वत- श्रृंखला में ताण्डव नृत्य किया था। ताण्डव नृृत्य,वास्तव में सृष्टि के त्याग का प्रतीक माना गया। वहीं इसके साथ एक और मान्यता है कि पूर्वकाल में एक बार भगवान श्री सदा शिव महाराज ताण्डव नृत्य कर रहे थे। नृत्य करते समय उनका जटाजूट ढीला हो गया और उसमें पंचतरणी गंगा बह निकली, जो महापापों को दूर करने वाली है। इसके बाद डमारक देवता के दर्शन के लिये आगे बढ़ना चाहिये। क्योंकि यह वह तीर्थ हैं जहां बड़े से बड़ा पापी भी डमारक देवता के दर्शन करने से पापों से छूट जाता हैं। हे देवी! अधिक क्या कहूं? बस इतना कहना ही पर्याप्त है कि यात्री डमारक देवता की पूजा तथा परिक्रमा करने से ही श्री अमरनाथ के दर्शन योग्य होता हैं।
गर्भ योनि की महिमा
परिक्रमा और प्रणाम कर, पहाड़ से उतरते समय,मध्य में चलते हुए मार्ग मे जो गर्भ-योनि हैं,उसमें प्रवेश करें। क्योंकि इसमें एक बार जाने से फिर मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता। गर्भ योनि से निकल कर अमरावती नदी में प्रवेश करें। अमरावती के दर्शन मात्र से मनुष्य देवता तुल्य हो जाता हैं। इस नदी के अमृत सामान जल में स्नान करके यात्री को चाहिए कि भस्म को अपने शरीर पर मले। हे देवी! जो मनुष्य ,पवित्र गर्भ-योनि से निकल कर,अमर गुफा को जाता है। उसका पुनर्जन्म नही होता है और फिर वह शिवरूप हो जाता हैं। हे देवी ! यह बात बिल्कुल सत्य हैं। हे ईशानि! जब भगवान श्री सदाशिव जी महाराज कैलाश पर्वत पर नृत्य कर रहे थे,उस समय नंदी उनकी आज्ञानुसार द्वारपाल था। जब देवता भगवान श्री सदाशिव जी महाराज के दर्शन के लिए आए तो नंदी ने उनको रोका अब देवताओं तथा नंदी में परस्पर युद्ध होने लगा। नंदी ने भगवान श्री सदाशिवजी महाराज से शिकायत की। भगवान श्री सदाशिव जी महाराज ने नंदी से कहा-तुम दण्ड धारण करो। देवता तुम्हारा कुछ भी नही बिगाड़ सकेंगे। तुम द्वार पर चलों और दीवार बनकर मार्ग में गर्भ-योनि को रख दो। देवता उसमें प्रवेश न कर सकेंगे। भगवान श्री सदाशिव जी महाराज की बात सुनकर नंदी ने, गर्भगृह के आगे,एक बहुत बड़ा पत्थर रख दिया,जिसमें कि योनि सदृश छिद्र था। देवता उस पत्थर को पार न कर सके। तभी से इसका नाम गर्भ-योनि प्रसिद्ध हो गया। हे प्रिय! जो पुरूष जन्म जन्मान्तर के पापोें से मुक्त होना चाहे,वह गर्भ योनि में से निकल कर श्री अमरावती नदी में स्नान कर उसी की भस्मरूप कीचड़ को शरीर पर मलकर उनसे सफेद होकर थोड़े वस्त्र,कोपीन और रेशमी धोती को पहने। फिर सन्मार्ग प्रदान करो! कहते हुए तथा शिव-शिव का उच्चारण करते हुए, क्रोध -मोह आदि का त्याग कर पहाड़ पर चढ़े ! मनुष्य गुफा में स्थित अमरेश्वर -भगवान (देवताओं के देव भगवान शिव) को नमस्कार करें और प्रभु के चरणों में मन लगाकर भक्ति के साथ इस तरह स्तुति करें और सुधालिंग केें दर्शनों से मनुष्य के बाहर व भीतर का मैल नष्ट होकर वह शुद्ध तथा पवित्र हो जाता हैं। अमृत से बने हुए सुधालिंग के दर्शनों एवं स्पर्श-पूजन तथा वन्दन से, महा पापी मनुष्य भी समस्त पापों से छूट जाता हैं। कलयुग में मुक्ति का इससे बढ़ कर दूसरा साधन बिल्कुल नहीं है। वितस्ता (जेहलम नदी) मे 6 स्नान और श्री अमरनाथ जी की यात्र में 30 स्नान है। इसके अलावा यहां पर देवताओं के 36 स्थान है। उन देव स्थानों के दर्शन करने से मनुष्य को शिवधाम की प्राप्ति होती हैं। इस प्रकार यदि मनुष्य यात्र करता हुए रसात्मक लिंग के दर्शन करे तो मोक्ष की प्राप्ति होती है।जिससे कि उसकों बार-बार जन्म मरण का दुख नहीं भोगना पड़ता।
यात्र का महात्म्य
भगवती श्री पार्वती ने भगवान् श्री सदाशिव जी महाराज से पूछा – हे प्रभु! किस समय की यात्र महाफल देने वाली है? श्री अमरनाथ जी के दर्शन व पूजन से क्या फल प्राप्त होता है? इसके अतिरिक्त यह भी बताइये कि बड़े से बड़ा पापी किस वस्तु का दान करे,जिससे कि उसके समस्त पाप नष्ट हो जायें? हे देवी! श्रावणी पर यात्र करनी बड़ा भारी पुण्य देने वाली है। क्योंकि प्रयाग से सौ गुणा, नैमिषारण्य तथा कुरूक्षेत्र से हजार गुणा अधिक पुण्य देने वाला श्री अमरनाथ जी का पूजन हैं। जो कि मैंने तुम्हारे हित के लिए कहा है। देवताओं की हजार वर्ष तक सोने, फूल, मोती और पट्ट-वस्त्रें से पूजा का जो फल मिलता हैं,वह श्री अमरनाथ की रसलिंग- पूजा से एक ही दिन मेंं प्राप्त होता है। कस्तूरी, कपूर, चन्दन, केसर, मोती, सोने, चांदी, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और अनेक प्रकार की सामग्री से जो मनुष्य भगवान् श्री अमरनाथ जी का पूजन करता हैं, उसको बड़ा भारी फल मिलता है। भगवान श्री अमरनाथ भगवान जी की आरती और परिक्रमा से भी बहुत पुण्य प्राप्त होता हैं। श्री अमरनाथ जी का दर्शन व स्पर्श करके,पंचतरंगिनी के उत्तर संगम में जाकर,देव व पितृ- प्रसन्नतार्थ श्राद्ध करें। लौटाने पर यात्रियों को मामलाख्य महाग्राम में जाकर श्री गणेश जी का पूजन करना चाहिए और वहां गंगा के तट पर खड़ी भगवती जी से,जो भगवान् श्री सदाशिव जी महाराज के सिर पर स्थित हैं,अपनी यात्र के सफल होने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पाताल-गंगा में स्नान करके यात्रियों को अपने-अपने घरों को वापस जाना चाहिए और नित्य रसलिंग का ध्यान लगा पूजन करना चाहिये।

गुफा में आखिर रसलिंग ही क्यों
श्री पार्वती जी ने भगवान शिव शंकर से कहा -हे प्रभु! अब मुझे आप गुफा में रसलिंग अर्थात अमरेश महादेव की कथा सुनाईये और मै यह जानना चाहती हूं कि महादेव गुफ में स्थित होकर अमरेश क्यों या कैसे कहलाये? भगवान श्री सदाशिव जी महाराज ने उत्तर दिया-हे देवी! सुनो,मैं अब विस्तार पूर्वक कहता हूं। इसके सुनने से मनुष्य करोड़ो पापों से छूट जाता है। आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, अहंकार, स्थावर (पर्वतादि), जंगल, (मनुष्य), संसार की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात् क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर गन्धर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कुषमाण्ड, भौरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई,परन्तु इन्द्रादि देवता सहित सभी जीव मृत्यु के वश में हुए थे। देवता भगवान श्री सदााशिव जी महाराज के पास गए और उनकी स्तुति की। देवताओं ने कहा कि हमको मृत्यु बाधा करती हैं। आप कृपया कोई ऐसा उपाय बतलायें जिससे कि मृत्यु हम लोेंगों को बाधा न करे। भगवान श्री सदाशिव महाराज ने देवताओं की बात सुनकर कहा-‘‘आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा।’’ भगवान श्री सदाशिव नें इस तरह कहकर अपने सिर पर से चन्द्रमा की कला को उतार कर निचोड़ा और देवताओं से कहा ‘‘यह आप लोगों के मृत्यु रोग की औषधि है।’’ हे देवी! इस चन्द्रकला के निचोड़ने से पवित्र अमृत की धारा बह निकली । वास्तव में वह धारा अमरावती नदी है। हे प्रिये जो अमृत के बिन्दु चन्द्र कला के निचोड़ते समय भगवान श्री सदाशिव जी महाराज के शरीर पर पड़े थे,वह सूख गए और पृथ्वी पर गिर पड़े। गुफा में जो भस्म हैं,वह अमृत-बिन्दु के कण है जो भगवान जी के चन्द्रकला के निचोड़ने से शरीर पर और बाद में पृथ्वी पर गिरे थे। हे देवी! भगवान श्री सदाशिव जी महाराज देवताओं को प्रेम दिखाते हुए द्रवीभूत हो गए। देवता भगवान श्री सदाशिव जी महाराज को जल-स्वरूप देखकर स्तुति करने लगे और बार-बार नत-मस्तक होकर नमस्कार करने लगे। जब भगवान श्री सदाशिव जी महाराज ने पुनः भाव- विभोर होकर यथार्थ-स्वरूप उनको दिखाया। इसी कारण प्रत्येक पक्ष में अमृत पिघलता और जमता हैं। हे देवी! यह रस (द्रवीभूत) कठिन होकर लिंग रूप में परिवर्तित हो गया। लिंगरूप भगवान् श्री सदाशिव जी महाराज को फिर मूलरूप हुआ देखकर देवता उनको बारम्बार नमस्कार करने लगे। भगवान् श्री सदाशिव ने बड़ी दयायुक्त वाणी से देवताओं से कहा- ‘‘हे देवताओं! तुमने मेरा बर्फ का लिंग-शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नही रहेगा। अब तुम यहीं पर अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाओ। आज से मेरा यह अनादिलिंग -शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा।’’ देवता इस अमरेश्वर-महाराज के लिंग-शरीर को नमस्कार और परिक्रमा करके, अपने अपने स्थान को चले गये। परन्तु सत्य रूप में गुफा में भी रहे। हे देवी! भगवान् सदाशिव देवताओं को ऐसा वर देकर उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान् श्री सदाशिव जी महाराज ने अमृत-रूप सोमकाला को धारण करके, देवताओं की मृत्यु का नाश किया, इसलिए उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ हैं। हे महेश्वरि! गर्भपात करने वाला, गुरू की शैया पर आरूढ़ होने वाला, मदिरापान करने वाला, स्वर्ण चुराने वाला, गऊ हत्या करने वाला, ब्रम्हत्या आदि करने वाला भी यदि श्री अमर नाथ जी के रसमय लिंग शरीर का दर्शन करे तो वह उसी क्षण पापों से मुक्त हो जाता है और केसर, मोती, सोने, चांदी, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और अनेक प्रकार की सामग्री से जो मनुष्य भगवान् श्री अमरनाथ जी का पूजन करता हैं, उसको बड़ा भारी फल मिलता है।

डमारक देवता की पूजा के बिना अधूरी हैं पवित्र श्री अमरनाथ यात्र
पवित्र श्री अमरनाथ गुफा में भगवान शिव ने अमर कथा सुनातेे हुये माता पार्वती को बताया कि बड़े से बड़ा पापी भी डमारक देवता के दर्शन करने से पापों से छूट जाता हैं हे देवी! अधिक क्या कहूं? बस इतना कहना ही पर्याप्त है कि यात्री डमारक देवता की पूजा तथा परिक्रमा करने से ही श्री अमरनाथ के दर्शन योग्य होता हैं। एक बार भगवान श्री सदाशिव जी महाराज नृत्य में इतने लीन हो गए कि उनका सन्ध्या समय भी व्यतीत हो गया। वास्तव में भगवान श्री सदाशिव जी महाराज श्री कार्तिक स्वामी के साथ क्रीड़ा कर रहे थे तथा भगवान सदाशिव को संध्या समय सूचित करने के लिए नियुक्त महा डमारक नामक गण को निंद्रा आ गई। जिससे भगवान सदाशिव जी महाराज के क्रोघ का कोई पारावार न रहा और उन्होेंने उक्त गण को श्राप दिया कि वह शिलारूप होकर देर तक
वहां ठहरे। वह गण कांपता हुआ भगवान श्री सदाशिव जी की सेवा मे उपस्थित हुआ। भगवान ने उसको क्षमा नहीं दी,लेकिन यह जरूर कहा कि जो यहां पर मेरे (अमरनाथ जी के)दर्शन के लिए आएगा,वह पहले तुम्हारी पूजा तथा परिक्रमा करेगा। हे देवी! उसी दिन से महाडमारक गण रत्न नामक शिखर पर,पाषाण रूप में होकर रहता था। भगवान श्री सदाशिव जी द्वारा दिए गए वरदान के अनुसार,जो मनुष्य उसका पूजन करता है,वह शिव धाम को प्राप्त होता हैं। यात्री को चाहिए कि श्रावणी के दिन प्रातः काल,भैराें घाटी की यात्र करते हुए,चोटी पर डमारक की शरण में पहुंचे। डमारेश्वर-भैंरव का दर्शन और भक्ति सहित पूजन कर,व्रत की जोत जलाये। फिर मालपूआं तथा लड्डुओ का भोग लगायें। उसके पश्चात ही आगे की यात्र करें।

गुफा में विराजमान कबूतरों का रहस्य
भगवती पार्वती ने भगवान् श्री सदाशिव जी से पूछा- हे प्रभु! कौन से शिवगण कबूतर हुए हैं और कबूतर क्यों हुए है और कहां पर स्थित है? कृपया यह सब मुझे विस्तार पूर्वक बतलाइये। भगवान् श्री सदाशिव बोले- एक समय भगवान् महादेव संध्या समय नृत्य कर रहे थे और द्वारपाल के रूप में अपने दो गण को नियुक्त कर रखा था। लेकिन यह गण आपस में ईर्ष्या के कारण ‘कुरू- कुरू’ शब्द करने लगे। जिसके कारण भगवान श्री सदाशिव का नृत्य प्रभावित हो गया और महादेव ने क्रोधित होकर उनको यह श्राप दिया कि तुम दीर्घकाल तक यही शब्द(कुरू-कुरू)करते रहोगे। चुनांचे और रूढ-रूपी-गण उसी समय कबूतर हो गये। इनके दर्शनों से समस्त पाप दूर हो जाते हैं। श्री अमरनाथ जी की गुफा में कबूतरों को देखकर जो भक्तगण ‘जय’ शब्द का उच्चारण करते हैं,वे स्वयं ही शिव स्वरूप हो जाते हैं। वर्तमान में भी पावन श्री अमरनाथ गुफा में शिवलिंग के पास सफेद रंग के कबूतर विराज मान हैं। लेकिन इनकी संख्या भिन्न समय में विभिन्न हो जाया करती है। पावन श्री अमरनाथ गुफा में बर्फ द्वारा निर्मित शिवलिंग के दर्शन के लिये आने वाले तीर्थ यात्रियों को इन कबूतर के भी दर्शन होते है। जो गुफा में ही विराजमान रहते हैं। इस बार भी पावन श्री अमरनाथ गुफा में दो कबूतरों ने अधिकांश यात्रियों को अपने दर्शन दिये गये। कबूतर रूपी इन गणों के दर्शनो को यात्र की सफलता के लिये अच्छा माना जाता है।

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