अब नजूल भूमि में बसे परिवारों को ध्वस्तीकरण का खौफ

उधमसिंहनगर में सबसे अधिक है नजूल भूमि पर बसे लोग,सरकार जल्द नहीं जागी तो हो जाएंगे बेघर

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देहरादून। हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रदेश के कई शहरों में बाजारों से अतिक्रमण हटाने के बाद अब नजूल भूमि पर बसे लोगों को हटाये जाने की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। इससे नजूल भूमि पर बसे हजारों लोगों में बेचैनी है। अतिकमण के मामले में जिस तरह अभी तक कमजोर पैरवी के चलते सरकार को मुंह की खानी पड़ रही है उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस मामले में सरकार जल्द ही नहीं जागी तो प्रदेश में नजूल भूमि पर बसे हजारों लोग बेघर हो जाएंगे। यूं कहें कि एक तरह से नजूल भूमि पर बसे हजारों घरों पर अब उजाड़े जाने की तलवार लटक रही है। पिछले कुछ समय से हाईकोर्ट के निर्देश पर देहरादून, रूद्रपुर, गदरपुर, नैनीताल, हल्द्वानी, सितारगंज, खटीमा, नानकमत्ता सहित कई स्थानों पर बाजारों से अतिक्रमण हटाकर हजारों भवनों को जमींदोज कर दिया गया है। सबसे पहले अतिक्रमण हटाओ अभियान की मार गदरपुर के व्यापारियों पर पड़ी। यहां मार्ग चौड़ीकरण की जद में आ रहे सैकड़ों व्यापारियों को चंद दिनों में ही अपनी इमारतें गिरानी पड़ी। अधिकांश लोगों ने खुद अपनी इमारते ढहाई तो कुछ इमारतों को जेसीबी की मदद से तहस नहस कर दिया गया। गदरपुर के व्यापारी इस अभियान से उबर भी नहीं पाये थे कि इसके बाद रूद्रपुर के मुख्य बाजार में अतिक्रमण को लेकर दायर की गयी जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश से व्यापारियों में हड़कम्प मच गया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद आज रूद्रपुर मुख्य बाजार का करीब करीब आधा हिस्सा तबाह हो चुका है। यहां हर तरफ मलवे के ढेर लगे हैं और बाजार की कई गलियों में लगातार इमारतें तोड़ने के लिए हथौड़े और घन चलाये जा रहे हैं। अतिक्रमण हटाओ अभियान से जहां व्यापारियों की वर्षों की मेहनत से बनाई गयी इमारतें टूट गयी हैं तो वहीं कारोबार चौपट होने से अब तक करोड़ों का नुकसान हो चुका है और फिलहाल आने वाले कई महीनों तक मुख्य बाजार की हालत सुधरने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। रूद्रपुर के साथ ही देहरादून, नैनीताल में भी कमोबेश यही स्थिति है। यहां भी हाईकोर्ट के निर्देश पर अतिक्रमण कारियों पर प्रशासन का चाबुक चल रहा है। सितारगंज,खटीमा, नानकमत्ता, रामनगर में भी इसी तरह अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाए जा चुके हैं। अतिक्रमण हटाओ अभियान के प्रदेश के कई शहरों पर जो कहर बरपाया जा रहा है वह फिलहाल निकट भविष्य में और विकराल रूप लेने के आसार है। दरअसल हाईकोर्ट ने पिछले दिनों सरकार की नजूल भूमि फ्रीहोल्ड नीति को सिरे से खारिज कर दिया है। यानि प्रदेश भर में जो भी लोग नजूल भूमि पर रह रहे हैं वह हाईकोर्ट की नजर में अतिक्रमणकारी है। जिन लोगों ने 2009 की नजूल भूमि फ्री-होल्ड नीति के तहत अपनी नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड कराया है उनके फ्रीहोल्ड को भी न्यायालय ने निरस्त कर दिया है और नजूल भूमि पर बसे लोगों को बकायदा हटाने के आदेश भी हाईकोर्ट दे चुका हैं। प्रदेश में नजूल भूमि पर बसे लोगों की संख्या हजारों में है। इनमें सबसे अधिक संख्या उधमसिंहनगर के जिला मुख्यालय रूद्रपुर में है। इसके अलावा नैनीताल, देहरादून, हरिद्वार में भी नजूल भूमि पर बड़ी संख्या में लोग बसे हैं। नजूल भूमि पर बसे लोगों को उजाड़े जाने के आदेश से जहां नजूल भूमि पर बसे लोग सहमे हुए हैं वहीं इससे प्रदेश सरकार में भी बेचैनी है। दरअसल इस आदेश से सरकार को अपने वोट बैंक की चिंता है। प्रदेश में निकट भविष्य में निकाय चुनाव होने है। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव भी सिर पर है। ऐसे में इन दो चुनावों से पहले अगर नजूल भूमि पर बसे हजारों लोगों को हटाया जाता है तो नजूल भूमि वाले जिलों में तो भाजपा का सूपड़ा साफ होना तय है। साथ ही इसका असर दूसरे जिलों पर भी पड़ना लाजमी है। चुनावी नफे नुकसान को देखते हुए इस मामले में भाजपा के दिग्गजों के माथे पर भी बल पड़े हुए हैं,इसीलिए प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों मलिन बस्तियों को उजाड़े जाने से बचाने के लिए एक अध्यादेश लागू किया था, इस अध्यादेश के अंतर्गत सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है कि जिससे अगले तीन वर्षों तक मलिन बस्तियों में बसे लोगों को नहीं उजाड़ा जाएगा। लेकिन सरकार का यह अध्यादेश महज एक चुनावी शिगूफा माना जा रहा है। दरअसल मलिन बस्तियों की जो परिभाषा है उस हिसाब से मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं है। सरकार उन बस्तियों को मलिन बस्ती मानती है जहां पर सड़क, पानी,बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी न हीं है और प्रदेश में ऐसी बस्तियां नाम मात्र की है। ऐसे में प्रदेश की सैकड़ों बस्तियों का उजाड़ा जाना तय है। अतिक्रमण हटाने के मुद्दे पर सरकार ने भले ही हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हाथ पांव मारे हो लेंकिन सरकार इस मामले में पूरी तरह फेल रही है। समय पर मजबूती से पैरवी न होना इस मामले में सरकार की बड़ी चूक कही जा सकती है। अब तक व्यापारियों को सरकार बचाने में नाकाम साबित हुई तो अब नजूल भूमि पर बसे लोगों के मामले में भी सरकार का उदासीन रवैया हजारों लोगों के लिए मुसीबत बन सकता है। नजूल भूमि पर बसे लोगों को हटाये जाने के आदेश से सबसे अधिक बेचैनी उधमसिंहनगर जिले के लोगों में है। यहां जनपद के कई शहरों में अतिक्रमण अभियान चलाया गया जिसकी जद में कई कच्चे पक्के निर्माण आये और उन्हें ध्वस्त कर दिया गया। छोटे से लेकर बड़े तक सभी नेताओं ने विरोध तो जताया लेकिन वह नाकाफी रहा। क्योंकि इन शहरों में अतिक्रमण हटाने के आदेश हाईकोर्ट ने दिये थे लिहाजा उन सभी जनप्रतिनिधियों का विरोध प्रदर्शन महज एक दिखावा साबित हुआ। लेकिन जिन लोगों के आशियाने पर जेसीबी गरजी वह उसको भुला नहीं पा रहे। जैसे तैसे अतिक्रमण हटाओ अभियान ठंडा हुआ तो 2009 नजूल नीति के तहत फ्रीहोल्ड किये गये आशियानों को भी हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया। जिसको लेकर सरकार तो सकते में आयी वहीं विपक्षी दलों को भी सरकार को घेरने का मौका मिला। लेकिन यह सिर्फ एक राजनीति के तहत चलता रहा। क्योंकि फ्रीहोल्ड निरस्त करने के आदेश भी हाईकोर्ट ने दिये थे लिहाजा कोई चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया। जहां कांग्रेस ने इसको भाजपा की कमजोर पैरवी करने का परिणाम बताया तो वहीं भाजपाईयों का कहना है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने इस मुद्दे पर कोई ठोस व कारगर नीति नहीं बनायी जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। लिहाजा जिस प्रकार से निरस्तीकरण के आदेश आ गये हैं यदि यह आदेश क्रियान्वित हो गये तो हजारों लोग सड़कों पर आ जायेंगे और उनके सिरों से आशियाने छिन जायेंगे। इसका जिम्मेदार कौन होगा इसका जबाब संभवतः कोई दे नहीं पायेगा। गौरतलब है कि सबसे पहले जनपद के गदरपुर शहर में अतिक्रमण हटाओ को लेकर याचिका दायर की गयी थी जिस पर हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश दे दिये थे। उसके बाद प्रशासन और भारी भरकम पुलिस की टीम ने गदरपुर में अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया। मुख्य बाजार के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक तमाम पक्के निर्माणों पर जेसीबी गरजी और जिसकी जद में आकर दर्जनों की संख्या में पक्के निर्माण ध्वस्त कर दिये गये। जिसके तहत गदरपुर शहर एक खण्डहर में तब्दील हो गया। कई महीनों पूर्व चलाये गये अतिक्रमण अभियान के बाद से आज तक गदरपुर शहर की हालत में सुधार नहीं हुआ। जगह जगह बड़े बड़े गड्ढे हो गये हैं और आयेदिन वहां दुर्घटनाएं होती हैं जिसको लेकर गदरपुर के लोग कई बार विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी जिसके चलते गदरपुर की हालत जस की तस बनी हुई है। उसके बाद रूद्रपुर में भी कमोवेश यही नजारा देखने को मिला कि जब हाईकोर्ट के आदेश के बाद रूद्रपुर में भी अतिक्रमण हटाओ अभियान प्रारम्भ किया गया। गल्ला मंडी से शुरू हुआ अभियान कुछ दिनों बाद मुख्य बाजार तक पहुंच गया और मुख्य बाजार में भी जमकर जेसीबी चली और घन बरसे। यहां भी जनप्रतिनिधियों ने विरोध जताया लेकिन नतीजा धाक के तीन पात रहा। यही हाल खटीमा और काशीपुर में भी देखने को नजर आया। खटीमा और काशीपुर में भी दर्जनों की तादाद में पक्के निर्माण ध्वस्त कर दिये गये लेकिन सभी जनप्रतिनिधियों की आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हुई। जनपद के कई शहरों में ध्वस्तीकरण अभियान चला लेकिन कोई चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया जिसका सीधे संदेश जाता है कि किसी भी जनप्रतिनिधि ने न्यायालय में सही पैरवी नहीं की जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ा। वहीं सरकार भी इस मुद्दे पर हाशिये पर चली गयी। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के बाद अब हजारों आशियाने उजड़ने के कगार पर है। हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए 2009 की नजूल नीति के तहत फ्रीहोल्ड को भी निरस्तीकरण के आदेश दे दिये। इस मुद्दे पर दोनों ही दलों के नेता एक दूसरे पर लापरवाही का आरोप लगाते रहे हैं लेकिन हैरत की बात यह है कि मुख्य दल भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अपनी सरकारों के रहते हुए कभी भी ठोस और मजबूत पैरवी न्यायालय में नहीं की। दोनों ही दल एक दूसरे पर वकीलाें की फौज होने का आरोप मढ़ते रहे लेकिन किसी भी दल ने इस दिशा में यदि न्यायालय में मजबूत पक्ष रखा होता तो संभवतः आज यह दिन न देखना पड़ता। यदि अब इस दिशा में वर्तमान भाजपा सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये तो निश्चित रूप से हजारों लोग बेघर होकर सड़कों पर आ जायेंगे जिसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

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