कुलपति से विवाद पर शुक्ला का खुलासा
पंतनगर के कार्यक्रम का अधूरा वीडियो वायरल कर बदनाम करने की काशिश: शुक्ला
देहरादून,21 अगस्त। विधायक राजेश शुक्ला ने कहा कि 11अगस्त को पंतनगर में आयोजित बीज गोदाम के शिलान्यास समारोह में पंतनगर विवि के अधिकारियों ने उन्हें अपमानित किया और विधायक के विशेषाधिकार का हनन किया गया। वह इस मुद्दे को विधानसभा में उठायेंगे क्योंकि यह सरकार की छवि धूमिल करने का प्रयास है। पत्रकारों से वार्ता करते हुए किच्छा क्षेत्र के विधायक राजेश शुक्ला ने कहा कि सोशल मीडिया में उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसके आधार पर उनके खिलाफ समाचार पत्र में प्रकाशित किये गये। उन्होंने कहा कि पंतनगर में आयोजित कार्यक्रम की जानकारी उन्हें नहीं दी गयी। जब उन्होंने कृषि मंत्री से दूरभाष के जरिये जानकारी पता की तो उसके पश्चात परियोजना के इंचार्ज व कुलपति का फोन आया और उन्हें 3बजे आमंत्रित होने को कहा गया। जब वह कार्यक्रम में पहुंचे और कृषि मंत्री का इंतजार कर रहे थे। वहां विवि के कुलपति व अन्य तमाम अधिकारी व कर्मचारी मौजूद थे। शिलान्यास के पट पर उनका नाम अंकित नहीं था। जब उन्होंने कुलपति से अपनी आपत्ति दर्ज करायी तो वहां मौजूद निदेशक शोध ने उन्हें अपमानित करते हुए कहा कि यह कोई आपके बाप का पैसा नहीं लगा है। कृषि मंत्री के पहुंचने पर उन्होंने शिकायत दर्ज करायी कि प्रदेश सरकार का शासनादेश है कि जिस क्षेत्र में सरकारी कार्यक्रम होगा उस पर सम्बन्धित मंत्री व क्षेत्रीय विधायक का नाम अंकित होगा। कृषि मंत्री द्वारा हां कहने पर उन्होंने कहा कि विवि के कार्यवाहक कुलपति एक मिनट भी इस पद पर रहने लायक नहीं हैं क्योंकि इनके सामने जूनियर अधिकारी ने कहा कि यह आपके बाप का पैसा नहीं है जिस पर उन्होंने कहा कि मेरे बाप का तो पैसा नहीं लगा लेकिन इनसे पूछिये कि क्या इनके बाप का पैसा लगा है? कृषि सचिव द्वारा कुलपति से पत्थर पर मेरा नाम न लिखने की गलती सुधार लेने व सम्पूर्ण घटनाक्रम पर खेद जताने पर उन्होंने इसका पटाक्षेप कर दिया। विधायक शुक्ला ने कहा कि अधूरी घटना का वीडियो किस उद्देश्य से वायरल कराया गया इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति न होने से वहां अराजकता की स्थिति है। निदेशक शोध ने कुलपति की चापलूसी करने हेतु उनके सामने मुझे अपमानित किया और वरीयता क्रम में 48वां नम्बर होने पर भी निदेशक शोध कैसे नामित कर दिये गये? उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर विश्वविद्यालय प्रशासन मौन कयों है इसकी जांच होनी चाहिए। जिन ठेकेदारों ने विश्वविद्यालय में निर्माण कार्य कराया और उनकी भुगतान फाइल पर निर्णय में इतना लम्बा समय क्यों लग रहा है यह भी जांच का विषय है। आईसीएआर से जो प्रोजेक्ट यहां आ रहे हैं और उन पर करोड़ों रूपए खर्च हो रहे हैं उसका आउटपुट क्या है? तथा कौन लोग उसे ठिकाने लगा रहे हैं इसकी भी जांच होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के हित में महामहिम राज्यपाल का हस्तक्षेप आवश्यक है।