उत्तराखंड के आंचल में ‘जिंदा’ रहेंगी ‘अटल’ यादें
अटल जी ने ही देवभूमि वासियों को दिया था सबसे बड़ा तोहफा
देहरादून।हिदुस्तान में जन जन की आंखो का तारा हमेशा के लिये कहीं गुम हो गया। नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में वयोवृद्ध नेता भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री 93 वर्षीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का देहांत हो गया है। देवभूमि उत्तराखंड राज्य निर्माण में अटल जी का जो योगदान रहा उसे यहां के वाशिंदे कभी नहीं भुला पायेंगे। राज्य आंदोलनकारियों के संघर्ष की बदौलत तत्कालीन पीएम अटल जी ने ही देवभूमि वासियों को ऐतिहासक तोहफा दिया था। इसके बाद 9 नवम्बर वर्ष 2000 में राज्य गठन का ऐलान हुआ। वहकई दफा देवभूमि आये हैं। अंतिम बार वह वर्ष 2004 में देहरादून आये थे जबकि विश्व विख्यात पर्यटक स्थल नैनीताल में वर्ष 2002 में एकांतवास पर आये। इससे पूर्व मसूरी की वादियों का आनंद लेने वह सन् 1994 में पधारे थे। सन् 1996 में अटल जी बाजपुर में विजय बंसल के फार्म हाउस पर आये थे। वर्ष 1973 में भी वह पूर्व सीएम स्व. नत्यानंद जी के आवास पर आये थे। इसके अलावा वह 1985 में गढ़वाल प्रवास के लिए आये थे। उन्होंने कोटद्वार, पौड़ी, श्रीनगर गढ़वाल एवं गोपेश्वर में जनसभायें भी की थी। कुमाऊं हो या गढ़वाल जब भी वह यहां आये जहां भी रूके अपनी छाप छोड़ गये। मसूरी और नैनीताल तो वह अपना दूसरा घर मानते थे। यहां जिसने भी उनके करीब जाकर नाता जोड़ा वह तो मानों उनका दिवाना हो गया। आज भी उनसे मुलाकात करने वाले बुजुर्ग और युवा नेता उनकी स्मृतियों को सहेज कर रखे हुए हैं। उत्तराखंड के पूर्व सीएम स्व. नत्यानंद स्वामी,भगत संह कोश्यारी और भुवन चंद्र खंडूरी से उनका गहरा लगाव रहा। प्रदेश के सबसे पहले सीएम के रूप में स्व. नत्यानंद स्वामी को उनके कहने पर सीएम बनाया गया था। उत्तराखंड के कई ऐसे आम लोग भी है जिन्होंने उन्हें बेहद करीब से देखा और उनके दुलार भरे अंजाद को महसूश भी किया है। आज उनकी यादों में प्रदेशभर के हर छोटे बड़े नेताओ के साथ ही क्या युवा और क्या बुजुर्ग यहां तक हर माता और बहन उनकी याद में आंसू बहा रहे हैं। यहां हर कोई उनके देहांत से गमगीन हो गया। सर्वमान्य अटल जी को अपना आदर्श नेता मानने वाले विभिन्न सियासी दलों के नेता उनकी की मौत से गमजदा हैं। यहां के नेताओं का चेहरा मुरझा गया, उनके जाने का गम किसी अपने परिजन के जाने जैसा है। नजाने कितने नेताओं ने राज किया है इस देश में मगर अटल जी का कुशल नेतृत्व को कभी भुलाया नहीं जा सकता। अटलजी सिर्फ राजनेता ही नहीं बल्कि जनता के दिलों में एक वीर रस के कवि,पत्रकारिता के साथ ही एक दर्जन से अधिक भाषाओं के ज्ञानी भी थे। उनके नेतृत्व काल की बेमिशाल यादे जिसमें वह जब सन् 1977 में संयुक्त राष्ट्र के मंच से हिंदी भाषा में भाषण देकर स्वदेश लौटे तो मानो उनका विदेश मंत्री के रूप नहीं बल्कि एक राष्ट्र नेता के रूप में स्वागत किया गया। इसके अलावा सन् 1999 के कारगिल की जंग में पाकिस्तान की धज्जियां उड़ाने का श्रेय भी उन्हें जाता है। विश्व के शक्तिशाली देशों की तरह भारत में भी सन् 1998 में परमाणु बम का परीक्षण कर उन्होंने दुनिया को चैका दिया था। इसके साथ ही सक्रिय राजनीति के बूते उन्होंने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरूआत कर ते हुए विकास की किरण को जन जन तक पहुंचाने का वह सराहनीय प्रयास आज भी जारी है। सचमुच इस महान नेता व जननायक की दूरदर्शी सोच और निर्णय ों की बदौलत देश में सरकारों के प्रति जनता में विकास और विश्वास नयी सोच जागृत हुई। देश के महान नेता को उनके कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर भारत सरकार द्वाराउन्हें सबसे बड़े सम्मान ‘भारत रत्न’ की उपाधि से भी नवाजा गया । उनके एक राजनैतिक भाषण में की गई भविष्यवाणी के अनुरूप आज देश में उनके मार्गदर्शन में बने राष्ट्रीय राजनैनिक दल भाजपा न सिर्फ प्रचंड बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज है बल्कि देश के अधिकांश प्रदेशों में भी भाजपा की सरकारें हैं। कुलमिलकार देखा जाये तो अटल जी के जाते जाते उनकी भविष्य वाणी भी सार्थक सि( हो गई। उनके निधन के ठीक एक दिन पहले ही भाजपा नीत मोदी सरकार का लालकिले की प्राचिर से अपने सम्पूर्ण पांच वर्ष के कार्यकाल का आखरी भाषण देश को सुना गये। आज भी क्या सत्ता क्या विपक्ष कर कोई उन्हे अपना आदर्श मानने से पीछे नहीं हटता। सत्ता से बाहर रहने के बावजूद वह कहते थे हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,सत्ता तो आती जाती रहती है लेकिन जनता का विश्वास कभी न मिटे। वह अनंत यात्रा पर चले गये हैं,दुःख है, पीड़ा है और गमजदा भी हैं…लेकन उनकी आवाज ,उनकी रच्नात्मक कवितायें हमेशा सबके मन मंदिर बसी रहेंगी .विश्वास नहीं हो रहा वह हमें अलविदा कह गये….!!
लौट कर आऊंगा ..कूच से क्यूं डरूं.. काश ! वह लौट आयें
देवभूमि उत्तराखंड राज्य निर्माता ‘अटल जी’ को शत् शत् नमन्
-एन.एस बघरी,देहरादून