भिक्षुक वेष न देखो वह स्वरूप है निरवानी, खुले आंख जब भीतर की तब आवे दर्शन पाने में
पूरा शिव परिवार विराज मान है गुफा में
गतांक से आगे——-
रम्जनोपल की कथा-
श्री शुकदेव जी,भगवान शंकर की पार्वती को सुनाई गई अमरकथा को, संत-समाज मेें बैठे सुना रहे थे और सभी जब बड़े ही शांत भाव से तथा उत्सुकतापूर्वक कथा श्रवण कर रहे थे। लम्बोदर जी की कथा कहने के बाद श्री शुकदेव जी बोले कि भगवान शंकर माता पार्वती से कहने लगे कि- हे प्रिये! मार्ग में आने वाले इस रम्जनोपल की कथा अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। हे पार्वती ! एक समय सीता, लक्ष्मण तथा राम ने विचरते- विचरते, रम्ज्न्ख्य -पवित्र- वन में आकर मदयुक्त राक्षसों को देखा। क्रोधावश उनको पसीना आ गया। यह पसीना कुण्डों में पड़ने से यह कुण्ड परम पवित्र हो गये। इसके पश्चात् भगवान श्री रामचन्द्र जी महाराज, पाषाण पर चढ़कर, बाणों से राक्षसोें को समाप्त करने लगे। बहुत से राक्षस मारे गये और बाकी के इधर -उधर भाग गये। उन राक्षसों का खून गिरने से वह गंडशैल (छोटी पहाड़ी) रंगीन हो गई और भगवान श्री रामचन्द्र जी महाराज के चरण स्पर्श से दूसरे को पवित्र करने वाली हो गयी । इस रम्जनोपल के दर्शन से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है और कुण्ड में स्नान करने से मोक्ष का अधिाकारी बनता है। इसके बाद नील-गंगा में स्नान करे, प्रसन्नचित हो,स्नायु-आश्रम (चन्दनबाड़ी) की यात्र करे। (नील गंगा के पवित्रता के बारे में हम अलग से बता चुके है। लेकिन फिर भी हम नील गंगा के बारे में यहां पर भी जिक्र कर देते हैं) नील-गंगा के बारे में बताया जाता हैं कि एक बार काम-कीड़ा तथा खेल की बातो में भगवान श्री सदाशिव का मुखश्री पार्वती के नेत्रें से साथ लग गया। तब उनका मुख अंजन (सुरमे) के कारण काला हो गया। फिर भगवान! श्री सदाशिव जी ने सुरमे से काला हुआ देखकर मुख को श्रीगंगा जी में धोया,जिससे गंगाजी का रंग काला पड़ गया। अतः गंगा का नाम नील गंगा हो गया। यह नदी महापापों को नष्ट करने वाली है। इसके पश्चात् यात्री को पौषाख्य-पर्वत (पिस्सू घाटी) पर चढ़ना चाहिए। पिस्सू घाटी के बारे में कहा जाता है कि प्राचीन काल में, भगवान शंकर इस घाटी के एक उच्च शिखर पर विराजमान थे। एक बार देवता और राक्षस,भगवान श्री सदाशिव के दर्शनों के लिए आए। वह पहाड़ पर चढ़ते समय,ईर्ष्या में ग्रस्त होकर कहने लगे कि हम पहले चढ़ेंगे। दोनों में युद्ध होने लगा। राक्षसों से हटकर देवताओं नें एकाग्रचित होकर भगवान श्री सदा शिव का ध्यान किया। अपने प्रिय भगवान श्री सदाशिव जी की कृपा से देवताओं ने राक्षसों का मार-मार कर चूर्ण बना दिया। जिस स्थान पर देवताओं ने राक्षसों का चूर्ण बनाया,वहां पर उनकी अस्थियों का एक बहुत बढ़ा ढेर लग गया। राक्षसों की हड्डियों के पीसे जाने के कारण ही इस घाटी का नाम पिस्सू घाटी पड़ गया। यह पर्वत यानि पिस्सू घाटी,अब भी शिव भक्तों के पाप ताप हरता हैं। इसके पश्चात श्री शेषनाग का दर्शन कर,विधिवत पूजन के साथ स्नान कर वायुवर्जन तीर्थ की ओर आगे बढ़ना चाहिये। शेषनाग पवित्र स्थल के सम्बंध में कहा जाता कि भगवान शिव ने निर्जन गुफा की ओर बढ़ने से पहले इस स्थान पर अर्थात ‘शेषनाग’ नामक झील पर अपने गले से सर्पो की मालाओं को उतार दिया था। वहीं भगवान विष्णु की आज्ञा पाकर इसी स्थान पर शेषनाग ने अपने सहस्त्र-मुखों से वायु का पान कर वायु रूपी दैत्य को भस्म कर लिया। उस दिन से ये पर्वत शेषनाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके बाद यात्रियों को वायुवर्जन तीर्थ पर जाना चाहिये। इस तीर्थ के बारे में कहा जाता है कि जब देवताओं ने राक्षसों को मार डाला तब उनमे से प्रष्टता नामक दैत्य वायु में मिलकर देवताओं को कष्ट देने लगा। इस पर समस्त देवता भगवान श्री सदाशिव महाराज के पास गए और उनकी स्तुति की। इस पर भगवान श्री सदाशिव जी महाराज ने प्रसन्न होकर कहा-हे देवताओं! तुम लोग यहां मढिएं बनाकर रहों। इसके देवतागण वहां पर पत्थर की मढ़िया बनाकर शान्तिपूर्वक रहने लगे। लेकिन एक बार दैत्य ने अपना उग्र रूप दिखाया। जब देवराज इन्द्र ने अपना ब्रज उठाया और उसी जगह राक्षस को मार डाला। तब से यह जगह वायुवर्जन,देवताओं से पूजित तीर्थ प्रसिद्ध हुआ। आज तक भी,श्री शंकर जी के श्रद्धालु भक्त ,यहां पर अपने पूज्य देवों कें लिए मढ़ियो की रचना करके, उनके प्रति अपनी भक्ति भावना प्रदर्शित करते है। यहां पत्थरों द्वारा देवताओं के लिए छोटे-छोटे घर बनाने तथा तीर्थ के दर्शन से मनुष्य अत्यन्त पुण्य को प्राप्त होता हैं। ब्रह्महत्या और गौहत्या से युक्त मनुष्य भी, इस तीर्थ के दर्शनों से इन महापापों से छूट जाता है।
हत्यारा-तालाब
हे देवी! जिस कारण यह तालाब (हत्यारा- तालाब) सूख गया हैं,वह सुनो! इसके सुनने से प्राणी संशय से रहित हो जाता है।जब भगवान सदाशिव जी महाराज तथा देवराज इन्द्र ने राक्षसो को नष्ट किया तो कुछ राक्षस भागकर इस तालाब मेें छिप गए। फिर वह राक्षस थोड़े समय के पश्चात्, देवताओं को पूर्ववत् दुःख देने लगे। भगवती पार्वती ने सदाशिव जी महाराज से देवताओं के दुःख दूर करने के लिए कहा। भगवान श्री सदाशिव महाराज ने श्राप दिया। वह तालाब सूख गया और राक्षस पकड़े गए। इस स्थान पर यात्रियों को मौन होकर यात्र करनी चाहिए।
हे सुन्दरी! इसके बाा पंचतपिणी (पंचतरनी) के पंचप्रवाहों में स्नान करें और देवता,ऋषि तथा पितरों का तर्पण सावधान पूर्वक होकर करे। पंचतरनी स्थान हैं जहां भगवान शिव शिव ने पंच-तत्वों (पृथ्वी, जल,वायु,अग्नि और आकाश) का परित्याग किया था। भगवान शिव इन्ही पंच-तत्वों के स्वामी माने जाते हैं जिनको उन्होंने,श्री अमरनाथ गफ़ुा में प्रवेश से पहले ही छोड़ दिया था। ——क्रमशः
पूरा शिव परिवार विराज मान है गुफा में
प्रकृति निर्मित श्री अमरनाथ की गुफा में हिम द्वारा निर्मित प्राकृतिक-पीठ पर हिम निर्मित शिवलिंग है। परम आश्चर्य हैं कि भगवान अमरनाथ का शिवलिंग और प्राकृतिक पीठ (हिम चबूतरा) पक्की बर्फ के है। जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र ही कच्ची बर्फ मिलती है। श्री अमरनाथ की गुफा में भगवान के साथ-साथ पूरा शिवपरिवार भी विराज मान है। पवित्र शिवलिंग के पास ही हिम द्वारा श्री गणेश पीठ तथा एक पार्वती पीठ भी बनता हैं। जिसमे पार्वती पीठ का विस्तार सबसे अधिक है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवती सती का कण्ठ भाग गिरा था। इस गुफा में जहां-तहां बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है। कहा जाता है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर श्रीराम कुण्ड हैं। गुफा में वन कबूतर भी रहते है। इस गुफा में प्रत्येक यात्री को अनिवर्चनीय अद्भुत- सात्विकता और शान्ति का अनुभव होता है। वास्तव में जिन्हें दर्शनों का सौभाग्य मिला है, केवल वही भक्त समझ सकते है कि गफुा में प्रवेश करके कितना असीम आनन्द प्राप्त होता है। इसका व्याख्यान नही किया जा सकता है।
शिव की हो कृपा तो साक्षात दर्शन देते हैं झील में नागों के राजा
भगवान शिव ने निर्जन गुफा की ओर बढ़ने से पहले इस स्थान पर अर्थात ‘शेषनाग’ नामक झील पर अपने गले से सर्पो की मालाओं को उतार दिया था। सम्भवतः इसी कथा के आधारभूत शेषनाग पर्वत पर नागों की आकृतियॉ विद्यमान है। वहीं इसके साथ एक और मान्यता प्रचलित हैं। जिसके अनुसार प्राचीन काल में इस पहाड़ पर एक बड़ा ही बलवान राक्षस वायु के सामान रूप वाला रहता था और यहां आने वाले देवताओं को बड़ा कष्ट पहुंचाता था। देवता भगवान श्री सदाशिव जी महाराज के पास गये। स्तुति के पश्चात् भगवान श्री सदाशिव प्रसन्न हुए। देवताओं ने क्षीरसागर के तट पर जाकर भगवान श्री विष्णु की स्तुति की। भगवान श्री विष्णु देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर बोले मैं अभी-अभी वायु रूपी दैत्य को ेनष्ट किये देता हूॅ। तुम स्वर्ग धाम जाओं। इसके पश्चात शेषनाग जी पाताल से प्रकट हुए उस पर भगवान श्री विष्णु सवार हुए और आज्ञा दी -हें सर्पराज! तुम सहस्त्र-मुखों से वायु का पान करो। अपने प्राणों को इस वायु द्वारा तृप्त करों क्योकि तुम वायु के खाने वाले हो। भगवान अमृतरूपी वचन सुनकर एक क्षण में शेषनाग ने देखते ही देखते वायु रूपी दैत्य को भस्म कर लिया। उस दिन से ये पर्वत शेषनाग के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा योंगीजन इसको अपना आश्रम भी कहते हैं। इसके दर्शन करने से,झील में स्नान करने से और यहां पर जप, हवन, स्तुति एवं स्वाध्याय करने से, मनुष्य अनन्त पुण्य तो प्राप्त करता है। वहीं सच्चें मन से यात्र करने वाले भक्त को भगवान शेषनाग झील में दर्शन भी देते है।
पंचतरणी-जहां भगवान शिव ने किया था ताण्डव नृत्य और पंचतत्वों का परित्याग
यह वह स्थान हैं जहां भगवान शिव ने पंच-तत्वों (पृथ्वी,जल, वायु, अग्नि और आकाश) का परित्याग किया था। भगवान शिव इन्ही पंच-तत्वों के स्वामी माने जाते हैं जिनको उन्होंने,श्री अमरनाथ गुफा में प्रवेश से पहले ही छोड़ दिया था। इसके पश्चात ऐसी मान्यता है कि शिव पार्वती ने इस पर्वत- श्रृंखला में ताण्डव नृत्य किया था। ताण्डव नृृत्य,वास्तव में सृष्टि के त्याग का प्रतीक माना गया। सब कुछ छोड़ छाड़ कर,अन्त में भगवान शिव ने श्री अमरनाथ की इस गुफा में, पार्वती सहित प्रवेश किया। वहीं इसके साथ एक ओर मान्यता है कि पूर्वकाल में एक बार भगवान श्री सदा शिव महाराज ताण्डव नृत्य कर रहे थे। नृत्य करते समय उनका जटाजूट ढीला हो गया और उसमें पंचतरणी गंगा बह निकली, जो महापापों को दूर करने वाली है। जो मनुष्य आलस्य रहित होकर इस पंचतरणी नदी में स्नान करता हैं,वह ब्रम्हाहत्या आदि घोर पापों से मुक्त हो जाता है। यहां पर स्नान करने वालों को वही फल मिलता है जो कुरूक्षेत्र,प्रयाग, नैमिशारण्य में स्नान तथा दान करने से प्राप्त होता हैं। यदि इस तीर्थ पर गऊ, वस्त्र, चन्दन,केसर, अगर बत्ती,कस्तूरी आदि ब्राम्हण को दान दिए जायें तो यात्री को शिवधााम की प्राप्ति होती है। इसके पश्चात ही श्री अमरनाथ धाम की यात्र करने का प्रावधान है।