अमृत तो देवताओं को दिया और आप हलाहल पान किया,ब्रम्हज्ञान दे दिया उसे जिसने तुम्हारा ध्यान किया

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गतांक से आगे——–पश्चिम वाहिनी गंगा में स्नान करके पितराें के उद्धार के लिए श्राद्ध करे।
इसके बाद सत्कार (साकरस) स्थान पर पहुंचे,स्नान करे ओर श्री गणेश का पूजन करे और फिर भद्राश्रम में जाये। फिर परम-पवित्र हयशीर्ष (सिलगाम) आश्रम में तथा स्त्रश्वतर क्षेत्र की ओर आगे बढं़े। वहां पहुंचने के बाद गंगाजल में स्नान करके संध्यावंदन आदि नित्य
क्रिया करे। सरलक (सलर) ग्राम में पहुंच कर पवित्र अनन्तनाग तालाब के जल में स्नान करे उसके बाद उत्तमबालखिल्य-आश्रम (ख्यिलन) को जाना चाहिए।
हे देवी! अब मैं पाप ताप को हरने वाले तथा चित्त को शुद्ध करने वाले बालखिल्य तीर्थ का महात्मय कहता हूं। ध्यान पूर्वक सुनो! पूर्व काल में,ब्रह्मचारी बालखिल्य नाम के महर्षियों ने भगवान की प्रसन्नता हेतु कठोर तप किया कुछ समय बाद पैर के अंगुष्ठ कं सहारे खड़े होकर तथा निराहार रहकर,इन्द्री तथा मन की वासनाओं को रोक कर समाधि में हजारों वर्ष व्यतीत हो गये। भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गये और उनको प्रत्यक्ष दर्शन दिया। महर्षियों ने भगवान विष्णु को देखा। तदोपरान्त बालखिल्य मुनि ने,समाधि त्याग कर विष्णु को नमस्कार किया। शंख, चक्र,गदा,पद्मधारी भगवान विष्णु की भक्ति युक्ति वाणी से प्रार्थना करने लगे -प्रभों ! आप सर्वव्यापक हैं,सर्व सामर्थ्यवान हैं। वेद,पुराण को प्रकाश में लाने वाले है। संसार के जन्म,मृत्यु तथा पालन पोषण करने वाले है।
हे प्रभो! हम आपकी शरण में है। ‘‘तीनों लोकों के स्वामी,लोकपालों के भी पति,देवों के देव,घट-घट में विराजमान प्रभो! हम आपकी शरण में हैं।आपका तेज बहुत ही प्रकाशवान है। आप माया (प्रकृति)का पर्दा बना कर संसार में नाटक करते हैं। नित्य नवीन रूप दिया करते है। श्री राम,श्री कृष्ण आदि रूप में अवतार लेते है तो कभी मोहिनी रूप धर लेते हैं।इस संसार-रूपी नाटक के आप ही सूत्रधार हैं। प्रभो! हम आपकी शरण में हैं। आप आदि,मध्य,अन्त से रहित हैं। आप निगुण भी है और सगुण भी है,संसार में कोई स्वरूप ऐसा नही है जिसमें आपका वास न हो। आप वेदान्त के सिद्धान्त से निश्चिय होने योग्य तथा योग- शास्त्रनुसार अभ्यास करने के योग्य हैं। अतः हे प्रभु! हम आपकी शरण में हैं, हम पर कृपा करे।’’
इस प्रकार प्रार्थना कर बालखिल्य-मुनियों ने महाविष्णु को नमस्कार किया। भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर गिरे हुए मुनियों को अपने हाथों सें उठाया और गम्भीर वाणी में उनसे बोले-
हे मुनि! मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं। जो आपकी इच्छा है,वही वर मांगे। मैं आपके अत्यन्त दुर्लभ,देव और दैत्यों से भी दुर्लभ,वर दूंगा।’’
बालखिल्य मुनि बोले- ‘‘प्रभु! आपके दर्शन से अधिक वर नही हैं,यदि आप हमें वर देना चाहते हैं तो यह वर दे आप कृपा करके ऐसा तीर्थ स्नान प्रदान करे। जहां हम तपस्या करके सिद्धि प्राप्त कर सके।’’ भगवान विष्णु ने मुनियों के वाक्य सुने, और अपनी आनन्द-प्रदायिनी-दृष्टि से मुक्त होकर,अपने चरण के अंगुष्ठ को वहां लगाकर,भगवती गंगा को प्रकट कर दिया। गंगा ने पवित्र आत्मा मुनियों के आश्रमों को भी पवित्र कर दिया। फिर भगवान विष्णु स्वयं भी उस बालखिल्य नाम के ग्राम में ठहर गये और मुनियों को वर दिया-‘‘श्रेष्ठ मुनियो! यह तुम्हारे नाम पर बालखिल्य तीर्थ होगा और प्रलयकाल तक मनुष्यो को पवित्र करता रहेगा।’’
श्री विष्णु वहीं अर्न्तध्यान हो गये। बालखिल्य क्षेत्र में,विष्णु के चरण , प्रकट गंगा विद्यमान है। अतः यह क्षेत्र बालखिल्य मुनियों के नाम से प्रसिद्ध है।इस क्षेत्र का दूसरा नाम नारायण- तीर्थ है। इस तीर्थ में स्नान करने से महापातक, उपपातक तथा समस्त प्रकार के पाप नष्ट हो जाते है।ंनारायण तीर्थ में कलियुग के संकट से भयभीत प्राणियों को स्नान करना चाहिए। इस क्षेत्र में स्नान जप-दान करने से जन्म जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं। उस बालखिल्य तीर्थ पर जगद्गुरू सर्वव्यापी नारायण का पूजन करें,जो कि नाना प्रकार के भोगों तथा मोक्ष के प्रदान करने वाले है। तीर्थ पर स्नान और यथाशक्ति दान देकर महावन (गणेशबल पहलगांव में है) में श्री गणेशजी का पूजन करे। शिवजी बोले ‘‘हे सुन्दरी! श्री गणेश जी को नमस्कार करके लड्डुओं तथा खीर का भोग लगावें।’’
इसके पश्चात पाप तथा विघ्नों से रहित होकर मामेश्वर (मामलेश्वर) क्षेत्र को जावे और वहां स्नान करने के पश्चात ही आगे की यात्र प्रारम्भ करे।
हे साध्वे! मामलेश्वर भगवान के दर्शन या तीर्थ जल में स्नान करके मनुष्य रोगों तथा पापों से छूट जाता है। यहां पर स्नान करने के पश्चात् मनुष्य दान करे तथा ब्राह्मणों को भोजन करवाये। (दान आप अपनी क्षमता अनुसार कर सकते है। वहीं ब्राह्मणों
को भी अपनी क्षमता अनुसार श्रद्धा के साथ भोजन कराया जा सकता है)

नीलगंगा-जहां शिव ने उतारा मुख से अंजन
चन्दनवाड़ी के समीप स्थित नील-गंगा का भी धार्मिक महत्व है। यहां स्नान करने के पश्चात ही स्नायु-आश्रम (चन्दवाड़ी)की यात्र करनी चाहिये। नील-गंगा के बारे में बताया जाता हैं कि एक बार काम-क्रीड़ा तथा खेल की बाताें में भगवान श्री सदाशिव का मुखश्री पार्वती के नेत्रें के साथ लग गया। तब उनका मुख अंजन (सुरमे) के कारण काला हो गया। फिर भगवान! श्री सदाशिव जी ने सुरमे से काला हुआ देखकर मुख को श्रीगंगा जी में धोया,जिससे गंगाजी का रंग काला पड़ गया। अतः गंगा का नाम नील गंगा हो गया। यह नदी महापापों को नष्ट करने वाली है। नील गंगा का स्पर्श,दुष्ट मनुष्यों के साथ रहकर जो दोष प्राप्त हुए हों,उन्हें तथा स्त्रीयों के मन के विकारों को नाश करता हैं, इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं है। यह नील गंगा पहलगांव से 6-5 मील दूर चन्दनवाड़ी के मार्ग में है। पूर्वकाल में भगवान श्री सदाशिव दक्षप्रजापति की पुत्री सती का वियोग हो जाने पर हिमालय में कठिन तप करने लगे। महेश्वरी फिर वहां पर बहुत वर्षो तक सेवा करती रही। सती ने पर्वतराज के यहां जन्म लेकर पार्वती का रूप पाया। यहां तपस्या करने के पश्चात् भगवान सदाशिव की सेवा करने लगी। लेकिन उनकी सेवा करने पर भी भगवान श्री सदाशिव की समाधि नही खुल पायी। तब भगवती पार्वती जी चन्दनवाटिका में बड़ी घबराई। जिस वाटिका में भगवान श्री सदाशिव वृक्ष के समान निश्चल रूप से तप में स्थित थे,उस वाटिका का नाम बाद में महापाप विनाशक प्रसिद्ध हुआ। हे देवी! इस स्थानु-आश्रम (चन्दन वाड़ी) के पास जो स्नान करता है वह शिवधााम को प्राप्त होता है। ब्रह्म- हत्या तथा गौ हत्या आदि महापाप करने वाला मनुष्य भी चन्दनवाड़ी में स्नान करे तो समस्त पापों से छूट जाता है। सरस्वती नदी का दर्शन करने से एवं उसमें स्नान करने से,मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता हैैै। यहां स्नान करने के पश्चात ही आगे की यात्र प्रारम्भ करनी चाहिये।

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