विभूति में जो कुछ उनके वह कुबेर घर माल नहीं, दीन के ऊपर दया करें कोई ऐसा दीनदयाल नहीं

51 शक्ति पीठों में से एक पीठ-श्री अमरनाथ गुफा

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गतांक से आगे———उनकी व्याकुलता को देखकर महाराज जनक बोले- ‘‘आप क्यों घबरा रहे हैं? आप तो अमर है। लेकिन हमारा शरीर अवश्य जलेगा।’’ इस पर भी जब श्री शुकदेव जी की व्याकुलता दूर न हुई तो महाराज जनक ने अपनी माया की अग्नि पुनः शान्त कर दी और प्रत्येक वस्तु पूर्ववत हो गई। यह देखकर श्री शुकदेव जी ने महाराज जनक को अपना गुरू बना लिया और उनसे उपदेश लिया। इसके बाद श्री शुकदेव जी नैमिषारण्य गये। वहां पर ऋषि- महाऋषियों ने उनका बड़ा आदर- सत्कार किया।

ऋषि-महा ऋषियों ने शुकदेव जी से अमरकथा सुनाने के लिए प्रार्थना की। श्री शुकदेव जी बोले इस कथा के सुनने वाले अमर हो जाते हैं। इसके पश्चात उन्होंने कथा सुनानी आरम्भ की। कथा आरम्भ होने के साथ ही कैलाश पर्वत, क्षीर सागर और ब्रम्हालोक हिलने लगे। ब्रम्हा, विष्णु, शिव तथा अन्य देवता उस स्थान पर पहुंचे जहां पर अमर कथा हो रही थी। भगवान शंकर को स्मरण हुआ कि यदि इस कथा के सुनने वाले अमर हो गये तो पृथ्वी का संचालन बंद हो जाएगा और फिर देवताओं की प्रतिष्ठा में अन्तर आ जाएगा। इसलिए भगवान श्री शंकर क्रोध में भर आये और श्राप दिया कि-

‘‘ जो इस कथा को सुनेगा वह अमर नही होगा, परन्तु हां, वह शिव लोक अवश्य प्राप्त करेगा’’

-श्री अमरनाथ यात्र की महिमा –

(यह कथा भगवान शंकर जी के श्रीमुख से भगवती पार्वती को,पवित्र गुफा में सुनाई गई थी, लेकिन भगवान शंकर के श्राप के कारण अब इस कथा को सुनने वाला अमर नही,अपितु शिव लोक को धारण करता है।)

श्री पार्वती जी ने कहा -हे प्रभु! मैं श्री अमरनाथ की यात्र की महिमा सुनना चाहती हूं,जिसके सुनने से जन्म- जन्मान्तर के पाप-ताप मिट जाते हैं। हे जगत स्वामी! आप श्री अमरनाथ जी के लिंग का महात्म्य तथा मार्ग के तीर्थो का वर्णन कीजिए। श्री अमर नाथ की यात्र तथा पूजन की विधि भी कहे और यह भी बतायें कि जो,शास्त्रेक्त यात्र को त्याग कर, केवल लिंग के ही दर्शन करता हैं,वह किस गति को प्राप्त होता है?

भगवान श्री शंकर ने कहा- मनुष्य श्री अमरनाथ जी की यात्र करके शुद्धि को प्राप्त करता हैं तथा शिवलिंग के दर्शनों से, भीतर बाहर से शुद्ध होकर,धर्म,अर्थ,काम,वचन तथा मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता हैैं। वह मनुष्य जो कि मार्ग के तीर्थो पर यथाविधि स्नान- दान इत्यादि न करके

सीधा गफुा में पहुंच जाता हैं,उसकी यात्र निष्फल समझो। पुनःभगवान श्री शंकर बोले हे देवी! दो प्रकार की यात्र होती हैं-पहली प्रकार यात्र अन्तर्मुखी  तथा दूसरी बहिर्मुखी यह दोनों प्रकार की यात्र,धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष की इच्छा को करनी चाहिए।

पहली वाली ऊपर तथा दूसरी नीचे की यात्र हैं। ऊर्ध्व (ऊपर) की यात्र, मोक्ष चाहने वाले योगियाें को,प्राणायाम द्वारा होती है। प्राण तथा अपान-वायु के एक होने पर,योग मार्ग दशम द्वार अर्थात ब्रम्हरन्ध्र में प्राणों को लीन करने से निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। अन्तर्मुखी यात्र साधारण- मनुष्य की सामर्थ्य से परे हैं क्योंकि सांसारिक सुखोपभोग की लालसा इसमें बाधक बन जाती हैं। निचली यात्र यानी पैदल यात्र से मनुष्यों के सम्पूर्ण पाप दूर होकर चित्त निर्मल हो जाता हैं। साधारण उत्साह व सामर्थ्य वाले मनुष्यों के लिए इस बहिर्मुखी यात्र का विधान है, जिससे वह अपने जीवन में आत्मिक संतोष प्राप्त करे। बहिर्मुखी यात्र के निरन्तर अभ्यस्त व्यक्ति ही समय के अंतर से यात्र की ओर उन्मुख होते हैं तथा विरक्त भाव से संसार के समस्त सुखों को भोग कर अन्त में वह भी मोक्ष को प्राप्त करते है। अन्तर्मुखी यात्र की ओर उन्मुख व्यक्ति संसार में विरले ही मिलते हैं और इस ओर अग्रसर होते है।

वह बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न होकर निश्चित मोक्ष की प्राप्ति करते हैं,परन्तु बहिर्मुखी यात्र साधारण मनुष्य को सुलभ हैं। अतःसंसार में अधिक मनुष्यों को अधिक से अधिक लाभ प्रदान करने की इच्छा सें यहां अमरनाथ की बहिर्मुखी यात्र का वर्णन करते है। अमरनाथ यात्र से सम्पूर्ण लाभ के अभिलाषी व्यक्ति को परम शक्तिशाली परम पूज्य अमर नाथ के प्रति श्रद्धासिक्त होकर भक्ति एवं पूर्ण समर्पण भाव से अपनी यात्र प्रारम्भ करनी चाहिए। सांसारिक सुखों और शारीरिक मानसिक कष्टप्रद दुःखों के प्रति समान भाव रखते हुये अमर नाथ महादेव का ध्यान,गुणगान और उससे सम्बन्धित वार्तालाप ही करे। भगवान शंकर जी ने यात्र की अवधि के सम्बन्ध में अपना मत प्रकट करते हुए पार्वती को बताया कि- हे पार्वती वैसे तो अमरनाथ यात्री के लिए मनुष्य के स्थायी निवास स्थान से लेकर अमरनाथ शिवलिंग के दर्शन तक के बीच का समय यात्र काल कहा जाता है। फिर भी सहीे रूप में श्रीनगर से अमरनाथ की गुफा में शिवलिंग दर्शन तक का यात्रकाल विशेष महत्वपूर्ण हैं। इसी तरह हठयोग और राजयोग से,तीर्थ पर किसी अच्छे विधान पंडित द्वारा अमरकथा सुनने से पुरूष ज्ञान का

अधिकारी हो जाता है। इस प्रकार कहे गये के अनुसार यात्र करने वाले मुक्ति को प्राप्त करते है। अतः पुण्य देने वाली निम्न यात्र का वर्णन किया जाता हैः- सर्वप्रथम श्रीनगर में,विघ्नों का नाश करने वाली श्री गणेश जी की पूजा करे। रीति के अनुसार भगवान श्री शंकर का स्मरण करते हुये यात्री वहां से बाहर निकल कर षोड्ष तीर्थ स्नान तथा आचमन करके शिव की ओर बढें। हे प्रिय! वहां गंगा जी का दर्शन और प्रणाम करके, भगवान श्री शंकर का पूजन, देवता और ऋषियों का तर्पण व ब्राह्मणों  को भोजन करवाये। फिर अन्न वस्त्र आदि दान देकर विसर्जन करें। फिर पदमपुर में,जो सिद्धों का तीर्थ है, वहां पर स्नान करके और दान देकर  मिष्टों (मिठव) तीर्थो पर स्नान करके अवन्तीपुर (बांतीपुर) को चले। वहां साधु महात्माओं के क्षेत्र में स्नान करके बहन्नाग (मिहरनाग) जाकर हरीपारा गांव में  विघ्नों के नाश करने वाले श्री गणेश जी का पूजन करे और देवताओं तथा ऋषियों का तर्पण करे। देवताओं तथा पितरों का तर्पण करने से तथा दान करने से श्री गणेश की कृपा से मनुष्य के समस्त विघ्न तथा पाप नष्ट हो जाते है।

इसके बाद बलिहार क्षेत्र (बहियार ग्राम)में स्नान करके आगे बढ़ें। नागाश्रम (बागहांन)जिसकों हस्तिकर्ण कहते हैं, संगम के समीप जाकर ज्येष्ठाषाढ़ नामक गणस्वामी के यहां भगवान श्री सदाशिव का पूजन करके आगे चले।

तीनों तापों तथा मलों का नाश करने वाले तीर्थ के जल मेें स्नान व आचमन करके चक्र नामक तीर्थ (चक्रधर) पर जाकर स्नान करके देवताओं तथा ऋषियों का तर्पण करें और क्षमतानुसार सोने का चक्र बना कर ब्राह्मण को दान देवें।

दान विधिवत हवन तथा जप करके देवे। फिर विधिवत हवन तथा जप करके देवकतीर्थ (देवकयार)की ओर चले और फिर वहां स्नान करके हरिश्चन्द्र तीर्थ (विजय बिहार) बीज बिहारा पहुंच कर स्नान करें तथा वृषभध्वज महादेव जी का पूजन कर हव्य कव्य आदि से देवताओं ओर ऋषियों का तर्पण करे। गऊ, स्वर्ण, तिल और भोजन यथा शक्ति सत्पात्र ब्राह्मण को दान देवे। ऐसा करने से मनुष्य को 100 ब्राह्मणों को तृप्त करने के फल की प्राप्ति होती हैं।

हे देवी! इसके पश्चात् भोजन करें और तीर्थ को नमस्कार करके आगे चले और लम्बोदरी नदी पर आलस्य रहित होकर स्नान करके,युजवार ग्राम में भगवान श्री सदाशिव के दर्शन करे। इसके बाद सूर्य क्षेत्र (मार्तण्ड भवन)मटन में सूर्य कुण्ड (सूर्यगंगा) में स्नान करके भगवान भास्कर का दर्शन करें।

सूर्यनारायण का पूजन

श्री सूर्य नारायण का पूजन संसार के समस्त भोगों तथा मुक्ति देने वाला है। यात्रियों को सूर्य-क्षेत्र में अन्न वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। यह सूर्य क्षेत्र (मटन) तीर्थ (अपने कर्मो से दुःखी  हुए पितरों कें उद्धार के लिए उत्तम है।

ऐसा देवताओं का, ऋषियों- महर्षियों का मत है। हे देवी! यहां पर पिण्डदान आदि से पितरों का उद्धार करें। दोनों कुण्डों का दर्शन करें और फिर उनमें मत्स्य रूप देवताओं का दर्शन करें और फिर उनको नाना मंत्रें से तृप्त करें। ———-(क्रमशः)

 

51 शक्ति पीठों में से एक पीठ-श्री अमरनाथ गुफा

प्रत्येक यात्री को चाहिए की वह जिस यात्र पर जा रहा हैं,उसके बारे में पहले से ही पूरी जानकारी ले लें कि वह पवित्र स्थान कहां पर है,उसका महत्व क्या हैं और जाने का कौन सा मार्ग है। श्री अमरनाथ का परम पावन स्थान कश्मीर में स्थित है। कश्मीर तीर्थो का घर है। आदि शक्ति जगदम्बा ने उस क्षेत्र में अपना स्थायी निवास बनाया और ब्रम्हा, विष्णु और महेश ने भी उस भूमि को,अपना स्थायी निवास बनाया। जिससे यह देश तीर्थमय हो गया। कश्मीर में 47 शिवधाम, 60 विष्णु धाम,3 ब्रम्हा धाम,22 शक्ति धाम व 600 जागधान तथा करोड़ो तीर्थ है। परन्तु उनमें जो अत्यंत उत्तम है। उनमें से एक है श्री अमरनाथ। यह 51 शक्ति पीठों में से एक पीठ है। अमरनाथ जी की प्रसिद्ध गुफा हिम-आच्छादित पर्वतों के मध्य 12729 फीट ऊॅचाई पर स्थित है। स्वयं प्रकट होने वाले शिवलिंग के साथ अनेक कथाओं का सम्बंध है। भगवान शिव का प्रकृति द्वारा रचित हिम शिवलिंग में प्रकट होना अपने में ही एक आश्चर्य है। यह शिवलिंग अमावस्या से पूर्णिमा तक बढ़ कर पूर्ण होता है और पुनः घटना प्रारम्भ कर देता है। शिव लिंग अमावस्या को भी रहता है। यह शिवलिंग भगवती-महामाया (प्रकृति) की कृपा से स्वयं बनता हैं और बहुत ही मंद गति से क्षीण होता है। यह लिंग कभी भी पूर्णतः लुप्त नही होता है। श्री अमरनाथ की गुफा पर्वतों के मध्य 60 फीट लम्बी, 30 फीट के करीब चौड़ी तथा 15 फीट ऊॅची,प्रकृति निर्मित गुफा है। इसी गुफा में हिम द्वारा निर्मित प्राकृतिक पीठ पर हिम निर्मित शिवलिंग है। परम आश्चर्य है कि भगवान अमरनाथ का शिवलिंग और प्राकृतिक पीठ (हिम चबूतरा) पक्की बर्फ के हैं, जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र ही कच्ची बर्फ मिलती है। जनसाधाारण का विश्वास हैं कि पूर्णिमा को यह शिवलिंग सबसे अधिक ऊॅचाई पर पूर्ण होता है और इसी दिन हजारों यात्री दुर्गम मार्ग को पार कर भगवान अमरनाथ के दर्शन करने आते है। श्री अमरनाथ की गुफा में हिम द्वारा ही श्री गणेश पीठ 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस स्थान पर भगवती सती का कण्ठ भाग गिरा था। जो आज श्रद्धा का केन्द्र हुआ है।

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