शिवजी तो कोई सूम नही जो धन को धरे खजाने में सारी वसुधा बांट दी मशहूर है जमाने में

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गतांक से आगे—————-
माता पार्वती ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिये भगवान शंकर जी से इस प्रकार विनय की-
‘‘हे प्राणनाथ,आप अपने भक्तों की सभी आशाएं पूर्ण किया करते हैं। आप ये भी जानते हैं कि मैं आपकी चिरसंगिनी होने के साथ-साथ आपकी भक्त भी हूॅ और आपके रहते या आपकी अनुपस्थिति में भी आपकी पावन स्मृति में डूबकर निरन्तर अन्तर्मन से पूजा किया करती हूॅ और मेरे मन के प्रत्येक प्रश्न का निवारण करने में आप समर्थ है।’’
‘‘हे नाथ, मैं यह जानना चाहती हॅू कि आप अपने गले में मुण्ड माला क्यों धारण करते है?
पार्वती जी के मनोहर मुख से ऐसे प्रश्न को सुनकर शंकर जी पर विस्मय का भाव निखर आया। ऐसा प्रश्न पार्वती ने पहले कभी नही पूछा था और जिसके उत्तर को भी वह पार्वती को बताना उचित नही समझते थे। भगवान शंकर मानो पार्वती के मन को समझाने की युक्ति सोच रहे थे। लेकिन बीच में ही पार्वती ने यह कहकर धयान भंग कर दिया-
‘‘हे सर्वेश्वर, आप शान्त क्यों है? क्या मेरा अनुरोध आपको स्वीकार नही है? मेरा प्रश्न आपके लिए इतना कठिन तो नही है, क्योंकि आप सर्वज्ञ हैं।’’
पार्वती की पुनः प्रार्थना पर शंकर जी-मानो इच्छा के विरूद्ध भी, बोलने के लिए बाध्य हो गए और उन्होंने पार्वती को इस प्रकार समझाना प्रारम्भ कर दिया- ‘‘हे पार्वती उपरोक्त प्रश्न के उत्तर का ज्ञान आपके हित में नही है। मैं चाहता हॅू कि इस विषय पर हठ धारण न करके आप शान्तिपूर्वक लोक आनन्द की सुमधुरता में विचरण करें।’’
शंकर जी के बार-बार समझाने पर भी पार्वती की उत्तर जानने की लालसा पुष्ट होती गई और उन्होंने इस प्रकार के नाटकीय हाव-भाव हठ- पूर्वक व्यक्त किए कि शंकर जी उत्तर देने के लिए जैसे विवश हो गए। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रश्न का उत्तर देना प्रारम्भ कर दिया। ‘‘हे पार्वती, मेरे द्वारा रूण्डमाला पहने जाने का कारण बड़ा रहस्यमय है। आप जितने रूण्ड (मुण्ड) मेरी इस कण्ठमाला में देख रही हो उतनी ही बार तुम्हारा जन्म हुआ है और तुम्हारे प्रत्येक जीवन की समाप्ति पर मैंने तुम्हारे रूण्ड को क्रमशः माला के रूप में धारण किया है’’भगवान शंकर के मुख से परमगूढ़ रहस्य को जानकर पार्वती जी चकित रह गई। वह मन्त्र-मुग्ध होकर बोल उठी- हे प्रभु, आपको मेरे प्रत्येक जीवन के हर एक कार्यकलाप, जीवन-मरण आदि का सम्पूर्ण ज्ञान है? क्या आप अमर है? और मैं मरती पैदा होती रही हूॅ? आपने अपनी अमरता का कारण सदैव मुझसे छुपाये रखा जो शायद आपके गूढ़ ज्ञानानुसार उचित ही होगा। परन्तु इस रहस्य की जानकारी पर मेरी यह जानने की भी इच्छा है कि आपकी इस शाश्वत अमरता का क्या कारण हैं? आप कृपा करके इस तथ्य के ज्ञान का भी दान देने का कष्ट करें। पार्वती के हठीले स्वभाव से शंकर जी परिचित थे। उनको इस तथ्य का पूर्वानुमान था कि पार्वती को प्रश्नोत्तर के बिना तृप्ति होना किसी भांति भी सम्भव नही है। अतः उन्होंने अपनी अमरता का कारण बताना प्रारम्भ किया।
‘‘हे पार्वती! एक कथा है, जिसको सुनने मात्र से ही सुनने वाला व्यक्ति अमर हो जाता है। मैंने उस अमर कथा को सुना है। उस पर चिंतन कर लोक-कल्याण के अनेक कार्यो को सम्पन्न किया है। अमर कथा भगवान सदाशिव की अनेक लीलाओं-कार्य- कलापों की एक अविस्मरणीय कहानी है। मैं उस अमर कथा को सुनने मात्र से ही अमर हूॅ।’’ भगवान शंकर की अमरता का कारण जानकर पार्वती ने कहा- (शेष अगले अंक में)

अमरकथा सुनाने के लिये गुफा ही क्यो चुनी?
माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए श्री शंकर जी ने, अमरनाथ की गुफा को ही क्यो चुना? इसके पीछे भी एक रहस्य हैं-युगों पहले, जब पार्वती के मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि शंकर जी ने अपने गले में मुण्डमाला क्यों और कब धारण की हैं,तो शंकर जी ने उत्तर दिया कि-हे पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ उतने ही मुण्ड मैंने धारण कर लिए। इस पर पार्वती जी बोली कि मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है,परन्तु आप अमर है, इसका कारण बताने की कृपा करें। भगवान शिव ने रहस्यमयी मुस्कान भरकर कहा-यह तो अमरत्व के कारण है। ऐसा सुनकर पार्वती के मन में भी अमरत्व प्राप्त कर लेने की इच्छा जागृत हो उठी और वह अमर कथा सुनाने का आग्रह करने लगी। कितने ही वर्षो तक भगवान शंकर इसको टालने का प्रयत्न करते रहें,परन्तु पार्वती के लगातार हठ के कारण उन्हें अमरकथा को सुनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। मगर समस्या यह थी कि कोई अन्य जीव उस कथा को ना सुने। अतः किसी एकान्त व निर्जन स्थान की खोज करते हुए भगवान श्री शंकर जी,पार्वती सहित, इन पर्वत मालाओं में पहुंच गए।
प्राचीन कथा में उल्लेख है कि इस अमर कथा को सुनाने से पहले भगवान शंकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि कथा निर्विघ्न पूरी की जा सके,कोई बाधा न हो तथा पार्वती के अतिरिक्त अन्य कोई प्राणी उसे न सुन सके। उचित एवं निर्जन- स्थान की तलाश करते हुए वे सर्वप्रथम ‘पहलगाम’ पहुंचे,जहां उन्होंने अपने नन्दी (बैल) का परित्याग किया। वास्तव में इस स्थान का प्राचीन नाम बैल-गांव था,जो कालान्तर में बिगड़कर तथा क्षेत्रीय भाषा के उच्चारण प्रभाव से पहलगाम बन गया। तत्पश्चात ‘चन्दनबाड़ी’ में भगवान ने (पृथ्वी, जल,वायु,अग्नि और आकाश) का परित्याग कर दिया। भगवान शिव इन्ही पंच-तत्वों के स्वामी माने जाते हैं जिनको उन्होंने, श्री अमरनाथ गुफा में प्रवेश से पहले ही छोड़ दिया था। इसके पश्चात ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती ने इस पर्वत- श्रृंखला में ताण्डव नृत्य किया था। ताण्डव नृृत्य,वास्तव में सृष्टि के त्याग का प्रतीक माना गया। सब कुछ छोड़-छाड़ कर,अन्त में भगवान शिव ने श्री अमरनाथ की इस गुफा में, पार्वती सहित प्रवेश किया और मृगछाला बिछाकर पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाने के लिए ध्यान मग्न होकर बैठ गए। लेकिन इससे पहले उन्होंने कालाग्नि नामक रूद्र को प्रकट किया और आज्ञा दी कि ‘‘चहुॅ ओर ऐसी प्रचण्ड अग्नि प्रकट करो! जिसमें आस-पास के समस्त जीवधारी जल कर भस्म हो सकें’’ कालाग्नि ने ऐसा ही किया। अब सन्तुष्ट होकर शिव ने अमरकथा कहनी शुरू कर दी———-। परन्तु उनकी मृगछाला के नीचे तोते का एक अण्डा फिर भी बच गया था, अण्डा भस्म नही हुआ,इसके दो कारण थे। एक तो मृगछाला के नीचे होने से शिव की शरण पा गया। दूसरे,अण्डा जीवधाारियों की श्रेणी में नही आता,अतः कालाग्नि के प्रभाव से बचा रहा। जिसने अण्डे से बाहर आकर अमरकथा को किसी प्रकार सुन लिया? फिर आगे क्या हुआ? इसका विवरण हम पवित्र श्री अमरकथा में दे रहे हैं।
पहलगामः जहां भगवान शिव ने किया था नंदी का परित्याग
भगवान शंकर माता पार्वती को श्री अमर कथा सुनाने के लिये किसी निर्जन-स्थान की तलाश में सर्वप्रथम ‘पहलगाम’ पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नन्दी (बैल) का परित्याग किया। वास्तव में इस स्थान का प्राचीन नाम बैल-गांव था,जो कालांतर में बिगड़कर तथा क्षे=ीय भाषा के उच्चारण प्रभाव से पहलगाम बन गया। वास्तव में यह स्थान अठखेलियॉ करती लिद्दर नदी के किनारे बसा हुआ है। इस स्थान ने अब एक कस्बे का रूप ले लिया है। यह स्थान श्रीनगर से 96 किमी की दूरी और समुद्रतल से 7200 फीट ऊॅचाई पर स्थित है। श्रीनगर से दो मार्ग पहलगॉव तक जाते है। पहलगॉव अपनी सुन्दरता के लिए विश्व में प्रसि) है। लिद्दर नदी पहलगॉव की सुन्दरता में चार चांद लगा देती है। पहलगॉव में आवश्यकता की सभी वस्तुएॅ प्राप्त हो जाती है। पहलगॉव के चारो ओर ऊॅचे-ऊॅचे पर्वत हैं, इसलिए यहां पर सर्दी बहुत अधिक पड़ती हैं। अतः यात्री पर्याप्त मात्र में ऊॅनी कपड़े अपने साथ लाते हैं। यहां थोड़ी सी वर्षा होने पर गर्मियों में भी सर्दी बहुत अधिक लगने लगती है। इस स्थान की सुन्दरता के विदेशी पर्यटक भी बहुत कायल है। जो प्रतिवर्ष पहल गॉव पहुॅचकर नैसर्गिक सौन्दर्य का आनन्द उठाते है और मौजमस्ती करते हैं।

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