तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में!

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करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र श्री अमरनाथ यात्र 29 जून से कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हो गयी है। देश भर से इस यात्र पर जाने के लिए शिवभक्तों में होड़ लगी है। खतरनाक रास्तों पर भीषण बारिश और पहाड़ों पर बिछी बर्फ की चादर भी शिव भक्तों के हौंसलों को कम नहीं होने देती। तमाम खतरों से जूझकर भी एक बार बाबा बर्फानी के दर्शन करने वाला भक्त यहां पुनः आने को लालायित रहता है। यही वजह है कि अमरनाथ यात्र पर जाने वालों की संख्या में हर वर्ष इजाफा हो रहा है। वैसे तो बाबा बर्फानी के दर्शन की इच्छा रखने वालों की संख्या करोड़ों में है लेकिन कम ही लोग दर्शन के लिए पहुंच पाते हैं। किसी वजह से जो लोग दर्शन के लिए नहीं पहुंच पाते हैं उन्हें हम यात्र का पूरा वृतांत समाचार पत्र के माध्यम से देने का प्रयास कर रहे हैं वैसे तो बाबा अमरनाथ की यात्र के आनन्द को शब्दों में बयां करना मुश्किल हैं। लेकिन हमें विश्वास है कि जो भी जानकारी हम दे रहे हैं उससे बाबा अमरनाथ की यात्र का आनन्द आपको भी जरूर मिलेगा। हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पर्वत, अठखेलियां करती नदिया, नैसर्गिक सौन्दर्य के बीच गूंज रहे ‘ओम नमः शिवाय’ और ‘हर-हर महादेव’ ‘बम भोले’ के उद्घोषों के बीच उत्साह से लवरेज तीर्थयात्रियों के कारवां का अद्भुत एवं विहंगम दृृश्य देखकर आखिर किसके मन में श्रद्धा और भक्ति पैदा न हो जायें। ऐसा ही नजारा भगवान शिव शंकर की कश्मीर स्थित पावन अमर गुफा में हिमलिंग के दर्शनार्थ जा रहे अनगिनत श्रद्धालुओं को देख बनता है। भगवान शंकर के रसलिंग के दर्शन करने का सौभाग्य जिसे भी प्राप्त होता है वह असीम आनन्द की अनुभूति करता है। श्री अमरनाथ गुफा में स्थित रसलिंग के दर्शन करने मात्र से ही कर्म तथा वचन से किये गये तीनों प्रकार के पापों का हरण एवं दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों का शमन होता है। धर्म,अर्थ,काम की प्राप्ति देने वाली इस पावन अमरनाथ यात्र का अपना अलग ही रोमांच और महत्व है। ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि देवताओं की हजार वर्ष तक सोने,फूल,मोती और पट्ट-वस्त्रें से की गयी पूजा के पश्चात जो फल मिलता हैं, वह श्री अमरनाथ गुफा की यात्र और रसलिंग पूजा व दर्शन से एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है। कहा जाता है कि इस पावन गुफा से संबन्धित कथा को सुनने मात्र से अमरपद की प्राप्ति के साथ-साथ शिवलोक में भी स्थान मिल जाता है। यह वह परम पवित्र कथा है जिसके सुनने से सुनने वालों को शिव की कृपा प्राप्त होती है तथा वह अमर हो जाते हैं। यह कथा श्री शंकर भगवान ने श्री अमरनाथ जी की गुफा में भगवती पार्वती जी को सुनाई थी। इस कथा को सुनकर ही श्री शुकदेव जी अमर हो गये थे। जब भगवान श्री शंकर यह कथा भगवती पार्वती को सुना रहे थे तो वहां एक तोते का बच्चा भी इस परम पवित्र कथा को सुन रहा था और इसे सुनकर फिर इस तोते के बच्चे ने श्री शुकदेव स्वरूप को पाया था। ‘शुक’ संस्कृत में तोता को कहते है और इसी कारण बाद में फिर वह मुनि शुकदेव के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुए। लेकिन भगवान शंकर ने स्वयं ही इस कथा को श्राप दे दिया था कि अमरकथा को सुनने वाले प्राणी अब अमर नही होंगे,नही तो सृष्टि की रचना और संसार का सारा क्रम बंद हो जायेगा, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने वरदान दिया कि इसे सुनने वालों को अब भी मुक्ति प्राप्त होगी। वह शिवलोक को जायेंगे और इहलोक में उनकी मनोकामनायें पूर्ण होंगी। यह अमर कथा माता पार्वती तथा भगवान शंकर का संवाद है। स्वयं श्री सदाशिव इस कथा को कहने वाले है। इसलिए इस कथा का नाम श्री अमरनाथ की अमर कहानी शंकर वाली है। शंकर भगवान और जगतमाता के इस सम्वाद का वर्णन भृगु-संहिता, नीलमत- पुराण, तीर्थ संग्रह आदि ग्रन्थों में पाया जाता है। हम यहाँ पर आपके सम्मुख यह परम पवित्र कथा विस्तार-पूर्वक रख रहें है।
‘‘देवर्षि नारद का कैलाश पर्वत पर आना और श्री पार्वती जी से पूछना कि भगवान शंकर के गले में रूण्डमाला क्यों है?
एक बार देव-ऋषि नारद कैलाश पर्वत पर भगवान श्री शंकर के स्थान पर दर्शन के लिए पधारे। भगवान श्री शंकर उस समय वन बिहार के लिए गये हुए थे और भगवती पार्वती यहाँ पर विराजमान थीं। श्री पार्वतीजी ने देव- ऋषि नारद को प्रणाम किया और सादर आसन दिया और बोली -‘देव ऋषि! आपने यहाँ पधार कर हम पर बड़ी कृपा की,अपने आने का कारण कहिए।’
नारद जी बोले-‘‘देवी! मेरा एक प्रश्न हैं उसका उत्तर चाहता हूँ।’’श्री पार्वतीजी ने कहा -कहिए?’’
नारद जी बोले-देवी! मुझे इस बात का बड़ा आश्चर्य है। भगवान श्री शंकर,जो हम दोनों से बड़े है,उनके गले में रूण्डमाला क्यों है? पार्वती जी बोली- इसका कारण मैं नही जानती। इस पर नारद ने कहा-आप यथासमय इसका कारण भगवान श्री शंकर से पूछियेगा।
इतना कहकर देव-ऋषि नारद वहां से चले गये। अब तो भगवती सती- पार्वती के मन में भी इस बात का भेद जानने के लिए तीव्र जिज्ञासा उत्पन्न हो गई। न जाने ये भेद महादेव ने मुझसे क्यों छिपाया हुआ है? ऐसा सोचकर वह महादेव जी के लौटने की प्रतीक्षा करने लगी। परन्तु उन्हें ज्ञान था कि शंकर जी की तपस्या और समाधि के समय का पूर्वानुमान लगाना कठिन है। पर्याप्त समय व्यतीत हो जाने पर भगवान शंकर की समाधि सम्पन्न हुई और कैलाश पर्वत स्थित अपने निवास स्थान की ओर लौटे, जहां पार्वती जी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी। अनायास ही तपस्या,शक्ति और शान्ति-क्रोध के प्रतिरूप भगवान ने निज-लोक में प्रवेश किया। ग्रन्थों में उल्लेख है कि उनको देखकर श्रद्धालु भक्तों तथा उस लोकवासी सभी प्राणियों को जो सुखानुभूति होती है उसका वर्णन नही किया जा सकता। अपने प्राणनाथ भगवान- शंकर जी के दर्शन कर माता पार्वती का हृदय कमल भी खिल गया। उन्होंने शिवजी महाराज की विभिन्न प्रकार से आरती और सेवा सुश्रुषा की। अधिक दिनों के पश्चात तथा विशिष्ट प्रकार की सेवा भावना के प्रदर्शन के कारण महादेव भी अति प्रसन्न हुए। भगवान शंकर जब प्रसन्न होते हैं तो संतों और भक्तों के संकट समाप्त हो जाते है। माता पार्वती भगवान शंकर के मनोहर रूप को अपलक निहारती रही। इसी बीच उनकी दृष्टि उनके नीलकंठ पर सुशोभित मुण्डमाला पर पड़ी। तो नारद जी का पूछा हुआ प्रश्न संजीव हो उठा और माता पार्वती के मन की जिज्ञासा भी बढ़ गयी और प्रश्न पूछने के लिये अच्छा मौका ढूंढने लगी। लेकिन उत्सुकतावश कि माता पार्वती जी से रहा नही गया और माता पार्वती ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिये भगवान शंकर जी से इस प्रकार विनय की-
(शेष अगले अंक में)

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