स्मार्ट मीटर पर कब तक ‘बेवकूफ’ बनाई जाएगी जनता?
कोई कुछ भी कहे पर अब जनता के हाथ तो अंततः स्मार्ट मीटर ही आएगा
रुद्रपुर। निकाय चुनाव के आक्रामक प्रचार के दौर से स्मार्ट मीटर पर शहर की जनता को बेवकूफ बनाने का आरंभ हुआ सिलसिला अभी तलक बदस्तूर जारी है ,मगर स्मार्ट मीटर पर जनता के सवालों का जवाब देने एवं उपभोक्ताओं की असल चिंता का को दूर करने के ईमानदार प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया जा रहे हैं । पहले शहर में प्रीपेड स्मार्ट मीटर ना लगने देने का वादा करके जनता का वोट ले लिया गया और अब स्मार्ट मीटर की हजारों हजार खूबियां बता कर उपभोक्ताओं को विद्युत प्रदाय के निजीकरण के मकड़जाल में फसाने की कोशिश चरम पर है। स्मार्ट पोस्टपेड मीटर, जिसका कि कालांतर में प्रीपेड मीटर बन जाना लगभग तय है, को उपभोक्ताओं के लिए खास फायदेमंद बताने और स्मार्ट मीटर को लेकर जनता के मन में बैठा दी गई आशंका- कुशंका को दूर करने के लिए राज्य सरकार के सभी मंत्रियों एवं सत्ता पक्ष के सभी विधायकों तथा राजधानी के आला प्रशासनिक अधिकारियों के निवास पर बड़े प्रचार प्रसार के साथ स्मार्ट मीटर लगाना आरंभ कर दिया गया है । वैसे तो सरकार की किसी मुहिम के लिए जनप्रतिनिधियों का जनता के समक्ष कोई प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करना ,कहीं से कहीं तक ऐतराज का विषय नहीं है, लेकिन यह सत्य भी अपनी जगह है कि तथाकथित स्मार्ट पोस्टपेड मीटर समूचे उत्तराखंड में लग जाने के बाद आरंभ होने वाले विद्युत निजीकरण के दौर में उपभोक्ता हित अप्रभावित बिल्कुल भी नहीं रह सकेंगे। वह इसलिए, क्योंकि मंत्री विधायक एवं प्रशासनिक अधिकारी सरकार की ओर बिजली भत्ता प्राप्त करते हैं और आमजन की तुलना में उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत है, इसलिए बिजली सप्लाई व्यवस्था के पूर्ण निजीकरण के बाद बिजली की दरों में होने वाली वृद्धिसे इन भद्रजनों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला ,लेकिन जनता का बजट तो मामूली सी मूल्य वृद्धिमें ही गड़बड़ा जाएगा। ऊपर की पंक्तियों में हमने अभी लगाए जाने वाले स्मार्ट पोस्टपेड मीटर के प्रीपेड मीटर में तब्दील हो जाने की जिस प्रबल संभावना को रेखांकित किया है ,वह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मूर्त रूप लेती दिख रही है। बताना होगा कि राजधानी में प्रीपेड मीटर लगाए जाने की कवायद आरंभ भी हो गई है और बाकायदा यह भी प्रचार किया जा रहा है कि उपरोक्त प्रीपेड मीटर का रिचार्ज 100 रुपए से भी संभव हो सकेगा। ऐसे में यह मानने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है कि प्रदेश की राजधानी में लगने वाला प्रीपेड मीटर रुद्रपुर में नहीं लगेगा। जाहिर है कि एक ही प्रदेश में विभिन्न शहरों के लिए अलग-अलग मानक सामान्यतया तो नहीं हो सकते और रुद्रपुर जैसे शहर को, जहां से राज्य का मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री अथवा राज्य सरकार का कोई मंत्री जनप्रतिनिधि निर्वाचित नहीं हुआ है, को स्पेशल ट्रीटमेंट भला क्यों दिया जाएगा ? लिहाजा ,रुद्रपुर शहर के भाजपाई सुरमा अभी भले ही यह दावे से कह रहे हों कि शहर में लगाए जाने वाले स्मार्ट मीटर पोस्टपेड प्रीपेड नहीं होंगे लेकिन आज नहीं तो कल उन्हें अपना यह वक्तव्य बदलना ही होगा और हर बार की तरह इसमें उन्हें कोई झिझक भी नहीं होगी। जनहित की दृष्टि से यह अच्छा है कि विपक्षी पार्टी कांग्रेस के कुछ नेता इलाके में तथाकथित स्मार्ट पोस्टपेड मीटर लगाए जाने का विरोध कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जनता को के समक्ष यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि समान भौगोलिक परिस्थितियों वाले प्रदेश हिमाचल में, जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां स्मार्ट मीटर लगाना अगर जनहितकारी है तो यह उत्तराखंड में खासकर रुद्रपुर में जन विरोधी कैसे हो गया? साफ शब्दों में कहें तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के ही नेता जनता को अपनी अपनी स्टाइल से बेवकूफ बना रहे हैं और जनता बेचारी का प्रीपेड मीटर के जंजाल में फसना लगभग तय है।