कांग्रेस के पास हैट्रिक लगाने का चांस: अयोध्या और बदरीनाथ के बाद अब ‘केदारनाथ’ सीट पर टिकी निगाहें !
सीएम धामी के साथ-साथ पीएम की प्रतिष्ठा भी केदारनाथ से जुड़ी, भाजपा पर केदारनाथ बचाने का जबरदस्त मनोवैज्ञानिक दबाव
रुद्रप्रयाग(उद ब्यूरो)। अयोध्या और बदरीनाथ में हुए चुनाव के बाद सबकी नजर अब केदारनाथ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव पर हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जहां केदारनाथ उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है, वहीं कांग्रेस ने इस उपचुनाव को जीतकर जहां सियासी जीत की हैट्रिक लगाने का मौका है तो वहीं अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस हासिल करने की दिशा में हर संभव प्रयास किया है । केदारनाथ विधानसभा सीट पर बदरीनाथ जैसा प्रदर्शन दोहराने के लिए कांग्रेस ने पूरी शक्ति लगा दी है। इस सीट पर सफलता के माध्यम से पार्टी पर्वतीय क्षेत्र के मतदाताओं में अपनी पैठ मजबूत होने का संदेश दे सकेगी, साथ ही उसे भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को निशाने पर लेने का अवसर मिल जाएगा। लिहाजा बदरीनाथ और मंगलौर उपचुनाव हारने के बाद बीजेपी केदारनाथ उपचुनाव को किसी भी कीमत पर हारना गवारा नहीं कर सकती । यह सीट न सिर्फ भाजपा की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है, बल्कि केदारनाथ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी सीधा कनेक्शन है। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद केदारनाथ को विकसित करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी खुद पीएम मोदी ने ली थी। पीएम का केदारनाथ से विशेष लगाव अक्सर ही दर्शित होता रहा है। बाबा के दर्शन के लिए पीएम कई बार केदारनाथ आ चुके हैं।प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार 3 मई 2017 को नरेंद्र मोदी केदारनाथ 1 आए थे,उसके बाद 20 अक्टूबर 2017 को भी वह बाबा के धाम पहुंचे । इसके अलावा 7 नवंबर 2018, 18 मई 2019 और 5 नवंबर 2021 को भी केदारनाथ पहुंचकर पीएम ने बाबा का आशीर्वाद दिया था। प्रधानमंत्री का पिछला केदारनाथ दौरा 21 अक्टूबर 2022 को हुआ था ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ प्रवास की सबसे ज्यादा चर्चाएं उस वक्त हुई थी, जब 2019 के लोकसभा प्रचार के बाद उन्होंने केदारनाथ की ध्यान गुफा में 17 घंटे ध्यान लगाया था। प्रधानमंत्री से सीधा कनेक्शन होने के कारण ही इस उपचुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं और चुनावी शोर थमने के बाद अब दोनों ही दलों में घर-घर दस्तक देकर अधिक से अधिक मतदाताओं से संपर्क साधने जबरदस्त होड़ मच गई है । विशेष कर भाजपा मतदाताओं से चुनाव पूर्व संपर्क के अंतिम अवसर का पूरा-पूरा सदुपयोग कर लेने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहती, क्योंकि केदारनाथ में धामी सरकार के सुशासन के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख भी दांव पर है। अगर केदारनाथ भाजपा के हाथ से फिसला, तो भाजपा का हिंदुत्व वाला एजेंडा कमजोर पड़ेगा ही, साथ ही समूचे विपक्ष को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पीएम मोदी पर हमलावर होने का मौका मिल जाएगा। इसलिए भाजपा पर केदारनाथ बचाने का मनोवैज्ञानिक दबाव काफी ज्यादा है । यही कारण है कि भाजपा ने केदारनाथ उपचुनाव के प्रचार चुनाव में अपने सभी प्रभावशाली नेताओं को झोंक दिया। मुख्यमंत्री सहित राज्य सरकार के तमाम मंत्री भाजपा सांसद एवं विधायक सभी ने केदारनाथ की गलियों की खाक छान मारी । उधर कांग्रेस के पास केदारनाथ में खोने के लिए कुछ भी नहीं है। उसे सिर्फ पाना ही पाना है अगर कांग्रेस केदारनाथ उपचुनाव जीतने में सफल रही तो उसके दोनों हाथ में लîóू होंगे ही और यदि उसके हाथ सम्मानजनक हार भी लगी तो वह भाजपा पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाकर भाजपा की जीत के महत्व को काम कर देगी।