हजारों आशियानों को अब ‘अध्यादेश’ की आस!
रूद्रपुर। प्रदेश में हजारों आशियानों पर लटकी ‘तलवार’ को अब सरकार ही हटा सकता है। सरकार जल्द ही नजूल भूमि पर बसे लोगों को बचाने के लिए अध्यादेश नहीं लाई तो हजारों आशियानों को उजाड़े जाने से कोई रोक नहीं पाएगा। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब नजूल भूमि पर रहने वाले लोगों की नजर सरकार के फैसले पर टिकी है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने हाल ही में प्रदेश सरकार की नजूल नीति को निरस्त कर दिया हैं। हाईकोर्ट का मानना है कि नजूल भूमि पर बसे लोग अतिक्रमण कारी हैं और इन अतिक्रमणकारियों को नजूल भूमि से हटाकर सरकारी नजूल भूमि को जनहित के कार्यो में उपयोग में लाया जाना चाहिए। हाईकोर्ट वर्ष 2009 और उसके बाद बनाई गई नजूल भूमि को फ्री-होल्ड नीति को गलत मानते हुये उसे खारिज कर दिया था। इसके साथ ही 2009 और उसके बाद हुये सभी फ्री होल्ड को निरस्त करने के आदेश दिये थे। यही नही भविष्य में नजूल भूमि को फ्री-होल्ड करने से सम्बंधित कोई भी नीति न बनाये जाने तक का आदेश दे दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले से प्रदेश भर में नजूल भूमि पर बसे लोगों की सांसे अटकी हुयी है। चूकि नजूल भूमि प्रदेश के देहरादून,हरिद्वार,नैनीताल और ऊधमसिंहनगर जिले में है और इसपर हजारों लोग पिछले कई बरसों से रह रहे है। इन जिलों में से ऊधमिंसहनगर जिले में सबसे अधिक लोग नजूल भूमि पर बसे हुये है। जिला मुख्यालय रूद्रपुर में ही नजूल भूमि पर बसे लोगों की तादाद हजारों में है। रूद्रपुर शहर में करीब 80 फीसदी आबादी नजूल भूमि पर ही निवास करती है। नजूल भूमि में व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के साथ ही हजारों आवासीय भवन हैं। शहर की दर्जनों बस्तियां भी नजूल भूमि पर ही बसी है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब इन हजारों घरों पर उजड़ने की तलवार लटकी है। लेकिन सरकार ने अभी तक इन्हें बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किये हैं। सरकार के पास इस मामले में दो ही रास्ते हैं या तो सरकार सुप्रीम कोर्ट जाए या फिर अध्यादेश लाए। सुप्रीम कोर्ट जाने से सरकार इसलिए भी कतरा रही है क्यों कि पिछले दिनों अतिक्रमण के मुद्दे पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी थी। सरकार को अंदेशा है कि इस मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट सरकार को वापस हाईकोर्ट का रास्ता दिखा सकता है। दूसरी तरफ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की समय सीमा भी जल्द ही समाप्त होने वाली है। ऐसी स्थिति में ‘अध्यादेश’ ही आखिरी रास्ता है। इस मामले में अभी तक सरकार का जो रवैया सामने आया है उससे लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है क्यों कि पूर्व में अतिक्रमण हटाने के मामले में भी सरकार ने पैरवी करने में देरी की थी जिसके चलते आज हजारों व्यापारियों को अपनी दुकानें तोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है। हालाकि सरकार नजूल भूमि पर बसी मलिन बस्तियों को बचाने के लिए पिछले दिनों अध्यादेश लाई है। जिसके तहत तीन साल तक मलिन बस्तियों को नहीं उजाड़ा जाएगा और सरकार मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों को आवास योजना के अंतर्गत आवास आवंटित करने के प्रयास करेगी। लेकिन यह अध्यादेश मलिन बस्तियों को बचाने में सफल होगा इसमें भी ‘संशय’ की स्थिति बनी हुयी है। अध्यादेश में मलिन बस्तियों के जो मानक तय किये गये हैं उसके हिसाब से यह अध्यादेश महज छलावा ही साबित होगा। दरअसल अध्यादेश में ‘मलिन बस्ती’ से सरकार का अभिप्राय उन बस्तियों से हैं जहां अत्यधिक जनघनत्व, अनियोजित निर्माण, मूलभूत सुविधाओं एवं भौमिक अधिकारों के अभाव के कारण स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की दृष्टि से मानव बसावट अनुपयुक्त हो। इनमें ऐसी बस्तियां भी संम्मिलित होंगी जो उपरोक्त एक या एक से अधिक कारकों के फलस्वरूप राज्य सरकार द्वारा मलिन बस्ती के रूप में अधिसूचित की गयी हो। अध्यादेश में यह भी जिक्र किया गया है कि 11 मार्च 2016 के बाद प्रारम्भ किये गये और निर्माणाधीन किसी भी प्रकार के अनाधिकृत निर्माण पर यह अध्यादेश प्रभावी नहीं होगा। साथ ही अध्यादेश में यह भी साफ है कि सार्वजनिक सड़क मार्गों, पैदल मार्गों, फुटपाथ एवं गलियों व पटरियों पर किये गये अतिक्रमण अनाधिकृत निर्माण आदि को भी अतिक्रमण माना जाएगा और संबंधित निकाय को इसे तोड़ने का अधिकार होगा। रूदपुर की ही बात करें तो मलिन बस्तियों को लेकर सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है उसके अंतर्गत शायद कुछ लोगों के आशियाने ही इस अध्यादेश के सहारे बच पायेंगे,वह भी मात्र तीन वर्षों तक उसके बाद उनका क्या होगा इस बारे में भी फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। कुल मिलाकर मलिन बस्तियों पर सरकार का अध्यादेश महज कुछ लोगों को मरहम लगाने जैसा है। नजूल भूमि पर बसे हजारों लोग अब इसी आस में है कि सरकार उनके आशियाने बचाने के लिए भी अध्यादेश लाएगी। बहरहाल समय रहते यदि सरकार ने इस ओर कोई प्रभावी कदम नही उठाया तो नजूल भूमि पर बसे हजारों अशियानों को बचाना मुश्किल होगा। गौर हो क पूर्व में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक भी नजूल नीति को दोबारा घोषित करने की बात कह चुके है। लेकन अब तक सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है जससे लोगों में भय का माहौल बना हुआ है।